लखीसराय से विजय सिन्हा ने INC के अमरेश कुमार को हराया

कांग्रेस इस सीट पर सिर्फ एक बार साल 1980 में ही जीत सकी थी. आरजेडी ने इस सीट पर साल 2005 में जीत हासिल की थी.

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बिहार के उपमुख्यमंत्री और भाजपा उम्मीदवार विजय कुमार सिन्हा ने लखीसराय सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार अमरेश कुमार को 24, 940 मतों के अंतर से हराया  2020 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर BJP उम्मीदवार विजय कुमार सिन्हा ने INC प्रत्याशी अमरेश कुमार को 73728 वोट हासिल कर करारी शिकस्त दी थी. 

पार्टीप्रत्याशीनतीजे
BJPविजय कुमार सिन्हाजीते
INCअमरेश कुमारहारे

बिहार के डिप्टी सीएम और बीजेपी के सीनियर नेता विजय कुमार सिन्हा इस सीट से मौजूदा विधायक हैं.  2020 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के अमरेश कुमार को हराकर जीत हासिल की थी.  2010 से वह लगातार तीन बार इस सीट पर जीतते रहे हैं. 1977 में बना लखीसराय विधानसभा क्षेत्र हलसी, बड़हिया और रामगढ़ चौक प्रखंडों से मिलकर बना है. अब यह मुंगेर लोकसभा क्षेत्र के छह विधानसभा क्षेत्रों में शामिल है.

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अब तक यहां पर 11 चुनाव हुए हैं, जिनमें ज्यादातर चुनावों में लखीसराय सीट पर बीजेपी का दबदबा रहा है. बीजेपी ने लखीसराय विधानसभा सीट पर पांच बार जीत हासिल की है. जनता पार्टी और जनता दल को दो-दो बार इस सीट पर जीत चुके हैं. कांग्रेस इस सीट पर सिर्फ एक बार साल 1980 में ही जीत सकी थी. आरजेडी ने इस सीट पर साल 2005 में जीत हासिल की थी, जिससे बीजेपी की जीत का सिलसिला टूट गया. साल 2010 में बीजेपी ने इस सीट पर एक बार फिर वापसी की, तब से वह लगातार चुनाव जीत रही है.

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लखीसराय का इतिहास

लखीसराय 1994 में मुंगेर जिले से अलग होकर एक स्वतंत्र जिला बना था. इस क्षेत्र का ऐतिहासिक महत्व काफी पुराना है. पाल वंश के दौरान यह प्रशासनिक और धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित था. पुराने समय में लखीसराय को चट्टानों, पहाड़ों और हिंदू व बौद्ध देवताओं और देवी-देवताओं की मूर्तियों के कारण पहचाना जाता था. बुद्ध साहित्य में इसे 'अण्पुरी' कहा गया है, जिसका अर्थ है जिला. प्राचीन काल में यह क्षेत्र मुंगेर या अंग देश के नाम से भी जाना जाता था. लखीसराय जिले में स्थित अशोकधाम मंदिर, जिसे इंद्रदेवन्स्वर महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है. 7 अप्रैल 1977 को अशोक नाम के बच्चे ने खेलते समय जमीन के नीचे एक विशाल शिवलिंग की खोज की थी. इसके बाद 11 फरवरी 1993 को जगन्नाथपुरी के शंकराचार्य ने मंदिर परिसर के पुनर्निर्माण का उद्घाटन किया था.

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