चारा घोटाला मामले में आखिर लालू यादव दोषी और जगन्नाथ मिश्रा बरी कैसे?

चारा घोटाले के एक मामले में जब से कोर्ट ने फैसला सुनाया है तब से ये बहस हो रही है कि आखिर लालू यादव को सजा और जगन्नाथ मिश्रा को बरी कैसे कर दिया गया.

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लालू यादव और जगन्नाथ मिश्रा (फाइल फोटो)
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कोर्ट ने कहा कि मिश्रा को संदेह का लाभ मिला.
सीबीआई लालू के खिलाफ सबूत देने में कामयाब.
लालू को साढ़े तीन साल जेल और पांच लाख जुर्माना.
पटना: चारा घोटाले के देवघर कोषागार से 89 लाख से अधिक की अवैध निकासी के संबंध में जब से फैसला आया है, तब से इस इस बात पर बहस हो रही है कि आखिर बिहार के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों में से एक लालू यादव को दोषी और डॉक्टर जगन्नाथ मिश्रा को कैसे बरी कर दिया गया? जबकि इस घोटाले के एक अन्य मामले में तीन साल पूर्व दोनों को एक साथ दोषी करार दिया गया था.

लेकिन देवघर कोषागार से संबंधित फैसले की कॉपी आने के बाद साफ है कि कोर्ट में सीबीआई पूर्व मुख्यमंत्री मिश्रा के खिलाफ आरोप साबित नहीं कर पाई. फैसले में जज शिवपाल सिंह ने लिखा है कि मिश्रा को संदेह का लाभ मिल रहा है, क्योंकि उनके खिलाफ आरोप साबित नहीं हुए. लेकिन सवाल है कि मिश्रा के खिलाफ क्या-क्या आरोप थे, जो साबित नहीं हुए और लालू के खिलाफ क्या-क्या आरोप थे, जिस पर कोर्ट सीबीआई की दलील से संतुष्ट हो गई.

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1. जगन्नाथ मिश्रा पर विपक्ष के नेता के रूप में तीन अधिकारियों, जिनमें दो मास्टरमाइंड श्याम बिहारी सिन्हा और डॉक्टर रामराज राम के सेवा विस्तार के लिए अनुशंसा करने का आरोप और साक्ष्य था. मगर इसके बदले उन्होंने कोई पैसा या अन्य सुविधा ली, उसका साक्ष्य सीबीआई नहीं दे पाई. जिन्होंने ये आरोप लगाये, वो ऐसे लोग थे जो अन्य मामले में खुद आरोपी थे.

2. जब लालू यादव विपक्ष के नेता थे, तब उन्होंने रामराज राम को निदेशक बनाने के लिए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था, लेकिन उस समय सीबीआई के अनुसार मुख्यमंत्री मिश्रा थे, जबकि सच्चाई थी कि उस समय मुख्यमंत्री सत्येन्द्र नारायण सिन्हा थे.

3. इसके अलावा कोर्ट इस बात से संतुष्ट था कि जब मिश्रा विपक्ष के नेता थे, तब उन्होंने पशुपालन विभाग में घोटाले की आवाज विधानसभा में उठाई थी, जिसके कागजात भी मोजूद हैं.

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दरअसल, कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि जगन्नाथ मिश्रा का सीधे तौर पर इस घोटाले में कोई संबंध साबित नहीं हो पाया या सीबीआई ऐसा कोई साक्ष्य नहीं जुटा पाई जिससे साबित हो सके कि घोटाले में मिश्रा की किसी तरह की भूमिका थी. 

वहीं, लालू यादव के खिलाफ सीबीआई ने सुनवाई के दौरान ये आरोप लगाया था कि उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद अवैध निकासी और तेज हुई. इसके अलावा ये भी सच है कि घोटाले के मास्टरमाइंड को उन्होंने सेवा विस्तार दिया. इतना ही नहीं, डॉक्टर श्याम बिहारी सिन्हा और आर के राणा का उनकी बेटी के रांची के एक स्कूल में स्थानीय अभिभावक के रूप में  नाम दर्ज था. इसके अलावा लालू यादव को दिसंबर 1993 में घोटाले का ज्ञान हो गया था, जब उन्होंने सीएजी रिपोर्ट देखी. यहां तक कि 1996 जनवरी महीने में जब मामला उजागर हुआ, तब लालू यादव ने फाइल पर ये टिप्पणी की कि आगे की कार्रवाई के पहले सभी तथ्यों को एकत्रित किया जाये.

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कोर्ट ने लालू को दोषी मानते हुए फैसले में लिखा कि चारा घोटाले के दो मुख्य मास्टरमाइंड डॉक्टर श्याम बिहारी सिन्हा और डॉक्टर रामराज राम लालू यादव के आंखो के सितारे थे. इसके अलावा लालू के खिलाफ जब भी जांच की मांग हुई, तब इस मामले के अन्य दोषी जैसे जगदीश शर्मा के साथ मिलकर उन्होंने मामले को दबाने की कोशिश की. 

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