बिहार में इस बार सबसे ज्यादा दलित विधायक, जानिए, राजपूत, भूमिहार के कितने

बिहार की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों पर टिकी रही है. 2025 के विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद एक बार फिर यह साफ हो गया कि सामाजिक आधार राजनीति की दिशा तय करता है.

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  • 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में यादवों की संख्या घटकर 28 हो गई जो 2020 के 55 से काफी कम है
  • कुर्मी, कुशवाहा और वैश्य जातियों के विधायक बढ़कर क्रमशः पच्चीस, तेइस और छब्बीस हो गए हैं
  • राजपूतों ने जनरल वर्ग में सबसे अधिक सीटें पाईं जो इस बार बढ़कर बत्तीस तक पहुंच गई हैं
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बिहार की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों पर टिकी रही है. 2025 के विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद एक बार फिर यह साफ हो गया कि सामाजिक आधार राजनीति की दिशा तय करता है. इस बार कई जातियों की सीटों में भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं. 2020 और 2015 के मुकाबले जातीय प्रतिनिधित्व का यह बदलाव आने वाले राजनीतिक संकेतों को भी दर्शाता है. 243 सीटों वाले बिहार विधानसभा में किस जाति से कितने विधायक चुने गए है.

यादवों की सीटें आधी से भी कम रही

2020 में जहां यादवों के 55 विधायक विधानसभा पहुंचे थे, वहीं 2025 में उनकी संख्या घटकर सिर्फ 28 रह गई. 2015 में यादव 61 सीटों पर जीतकर आए थे. लगातार तीन चुनावों की तुलना करें तो यादवों का राजनीतिक ग्राफ नीचे आया है. यादवों को पारंपरिक रूप से RJD का मजबूत वोट बैंक माना जाता रहा है.

वही 2025 का चुनाव कुर्मी, कुशवाहा और वैश्य समाज के लिए खास फायदेमंद रहा. 2020 में कुर्मी विधायक 10 थे, जो इस बार 25 हो गए. कुशवाहा 16 से बढ़कर 23 पर पहुंच गए ओर वैश्य 22 से बढ़कर 26 पहुंच गए. जनरल वर्ग में इस बार सबसे मजबूत प्रदर्शन राजपूतों ने किया है. पिछले चुनाव में राजपूत 18 थे, जो इस बार बढ़कर 32 सीटों पर पहुंच गए. यह संख्या जनरल वर्ग में सबसे अधिक है और कुल मिलाकर टॉप तीन समूहों में आता है.

भूमिहार ने भी स्थिर प्रदर्शन रखा है. 2020 में 17, 2025 में 23 विधायक. दोनों ही जातियों की सीटों में बढ़ोतरी से यह साफ है कि इस बार सामान्य वर्ग मतदाताओं ने बेहद एकजुट होकर वोट किया है.

ब्राह्मणों की संख्या में थोड़ी बढ़त हुई है लेकिन यह बहुत बड़ी छलांग नहीं मानी जा सकती. 2020 में 12, 2025 में 14 विधायक जीते. वहीं, कायस्थ की स्थिति कमजोर हुई है. 2020 में 3 थे, वहीं 2025 में सिर्फ 2 विधायक जीते. यह दोनों वर्ग पहले की तुलना में सीमित राजनीतिक प्रभाव रखते दिख रहे हैं. 

जाति 

2020 बिहार विधानसभा चुनाव

2025 बिहार विधानसभा चुनाव

यादव

55

28

कुर्मी

10

25

कुशवाहा

16

23

वैश्य

22

26

राजपूत

18

32

भूमिहार

17

23

ब्राह्मण

12

14

कायस्थ

03

02

पिछड़ा

21

13

दलित

38

36

मुस्लिम

14

11

पिछड़ा वर्ग के आंकड़ों में काफी गिरावट देखी गई. 2020 के 21 विधायक 2025 में घटकर 13 रह गए. यह संकेत देता है कि इस वर्ग में वोट बिखराव हुआ और कई नेता अपनी सीटें बचा नहीं पाए. दलित विधायकों की संख्या में गिरावट हुआ है. दलित विधायक 2020 में 38 थे और 2025 में भी यह संख्या बदलकर 36 रह गई. दलितों का भागीदारी बिहार विधानसभा चुनाव में ज्यादा बदलाव नहीं रहा, जो बताता है कि उन्हें टिकट और जीत दोनों स्तरों पर लगभग समान अवसर मिलता रहा है. एसटी सीटों में चार गुना उछाल हुआ. 

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मुस्लिम प्रतिनिधित्व में भारी गिरावट

2025 के आंकड़ों में गिरावट मुस्लिम विधायकों की संख्या में दिखती है. 2020 में 14 थे, वहीं 2025 में सिर्फ 11 विधायक जीते. यह गिरावट राजनीतिक दलों की रणनीति, टिकट वितरण जैसे कई कारण हो सकती है. पिछले दो चुनावों की तुलना में यह सबसे बड़ा बदलाव है. 2025 के चुनाव में AIMIM से 5, आरजेडी से 3, कांग्रेस से 2 और जेडीयू से 1 विधायक बने हैं. 

इस बार एक बात साफ है कि यादव और मुस्लिम वर्गों की सीटें बड़ी संख्या में घटी हैं. कुर्मी, कुशवाहा, वैश्य, राजपूत, भूमिहार और ST ने अपना प्रभाव बढ़ाया है. वही दलित भागीदारी में ज्यादा बदलाव नहीं रहा है. यह चुनाव जातीय राजनीति की दिशा में एक नया बदलाव रेखांकित करता है. मध्य OBC और जनरल वर्ग दोनों ने इस बार बड़ी हिस्सेदारी कायम की है. जबकि पारंपरिक MY (मुस्लिम–यादव) समीकरण की पकड़ कमजोर पड़ी है.  

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