- छठ महापर्व 25 अक्टूबर से शुरू होकर चार दिनों तक मनाया जाएगा और लोग आस्था से इसे मनाने की तैयारी में हैं.
- छठ पर्व के लिए नदी और तालाबों की साफ-सफाई की जा रही है तथा बाजार में पूजा सामग्री की बिक्री जोरों पर है.
- पहले दिन व्रती नहाय-खाय करते हैं जिसमें कद्दू की सब्जी, चना की दाल और अरवा चावल का सेवन होता है.
इस साल का महापर्व छठ 25 अक्टूबर यानी शनिवार से शुरू हो रहा है. चार दिवसीय महापर्व को लेकर लोगों में गजब का आस्था है. चारों ओर छठ के गीत सुनाई दे रहे हैं. नदी, पोखर, तालाबों की साफ-सफाई की जा रही है, किनारे घाट बनाए जा रहे हैं. छठ महापर्व को लेकर बाजार में आस्था की रौनक बढ़ गई है. बाजार छठ में उपयोग होने वाले सामान से पूरी तरह सज गया है. कहीं बांस से बने सूप-दौरा तो कहीं नारियल के ढेर लगे हैं. कहीं केले का घऊद है तो कहीं पानी फल सिंघारा और कहीं ईख. सड़कों के किनारे पसरौटे पर भी छोटे-बड़े सामान बिछ गए हैं.
नियम-निष्ठा का होता है विशेष ख्याल
इधर घरों को भी छठ महापर्व के निमित्त सफाई-धुलाई कर पवित्र कर लिया गया है. शनिवार को पहले दिन नहाय-खाय का विधान होता है. इस दिन व्रती स्नान ध्यान कर पर्व का गेहूं सुखाती है. गेहूं सुखाने में भी विशेष ध्यान रखना होता है ताकि कोई चिड़िया न चुग ले. नहाय-खाय के दिन व्रती अरवा भोजन ग्रहण करती है. इस दिन कद्दू की सब्जी, चना की दाल और अरवा चावल का भात खाने की परंपरा है.
छठ व्रती ज्योति कश्यप ने बताया कि दूसरे दिन खरना होता है. खरना के दिन धोये-सुखाए गेहूं को पिसवाकर इसी आटे से पकवान बनाया जाता है. वह पकवान मिट्टी के चूल्हे पर आम के जलावन से बनाया जाता है. खरना के महाप्रसाद में खीर, पूरी और केला होता है. जितने सूप और दौरा होते हैं, उतने ही नैवैद्य लगाए जाते हैं. देर शाम व्रती एक बार फिर स्नान कर पूजा घर में नैवैद्य लगाकर छठी मईया की आराधना करती है. उन नैवैद्य के साथ एक अतिरिक्त नैवैद्य लगाया जाता है, जिसे पूजा के बाद व्रती ग्रहण करती है. और इसी के साथ शुरू हो जाता है 36 घंटे का निर्जला व्रत.
36 घंटे का होता है निर्जला व्रत
छठ व्रती सोनी भारती ने बताया की तीसरे दिन छठ का पहला अर्घ होता है. व्रती सहित पूरा परिवार पास के घाट पर पहुंचता है. जहां फल और पकवानों से सजे सूप और दौरा को सजाया जाता है. व्रती पानी में स्नान कर डूबते सूरज की आराधना करती है. सूर्य के डूबने तक पानी में खड़ी रहती है और सभी सूप दौरा का बारी-बारी से जल से स्पर्श कराती है. अगली सुबह एक बार फिर सभी घाट पर जाते हैं और फिर वही क्रम दोहराया जाता है.
सूर्य की लालिमा दिखते ही सभी सुओ और दौरे को जल से संपर्क कराती है. फिर सभी लोग दूध और गंगाजल से अर्घ डालते हैं. व्रती घर पहुंचकर पहले आसपास के किसी मंदिर में पूजा करती है, फिर अपने गृहदेवता की पूजा कर प्रसाद खाकर व्रत समाप्त करती है. यह प्रकृति पर्व है. यह आदिकाल से मनाया जाता रहा है. महाभारत और स्कन्दपुराण में भी छठ महापर्व की चर्चा है. यक्षमा और कुष्ठ रोग से निवारण के लिए के लिए देवता ने भी यह व्रत किया था.














