- छपरा विधानसभा क्षेत्र में इस बार चुनाव तीन प्रमुख उम्मीदवारों के बीच त्रिकोणीय मुकाबला बन गया है
 - पूर्व मेयर राखी गुप्ता ने बीजेपी से टिकट न मिलने पर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का फैसला किया है
 - वैश्य मतदाता जो लगभग तीस प्रतिशत हैं, इस बार उनके वोटों के बंटवारे से चुनाव परिणाम प्रभावित होंगे
 
बिहार के छपरा विधानसभा क्षेत्र में इस बार का चुनाव बेहद दिलचस्प और त्रिकोणीय हो गया है, जहां भोजपुरी सुपरस्टार खेसारी लाल यादव को न केवल बीजेपी की उम्मीदवार छोटी कुमारी से चुनौती मिल रही है, बल्कि पूर्व मेयर राखी गुप्ता के निर्दलीय मैदान में उतरने से मुकाबला कांटे का हो गया है. विश्लेषकों का मानना है कि इस सीट पर हार-जीत का सारा गुणा-गणित निर्दलीय प्रत्याशी राखी गुप्ता को मिलने वाले वोटों पर टिका है.
बगावत ने बनाया मुकाबला त्रिकोणीय
बीजेपी से टिकट कटने के बाद पूर्व मेयर राखी गुप्ता ने बगावत करते हुए निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया. बीजेपी ने उनकी जगह छोटी कुमारी को टिकट दिया है. यह बगावत बीजेपी के लिए सिरदर्द बन गई है, क्योंकि राखी गुप्ता और छोटी कुमारी, दोनों ही बनिया समुदाय से आती हैं. ऐसे में इस सबसे बड़े और निर्णायक वोट बैंक (वैश्य मतदाता) के बंटने का सीधा अंदेशा है, जिसका लाभ खेसारी लाल यादव (यादव उम्मीदवार) को मिल सकता है.
छपरा का बदलता चुनावी समीकरण
एक समय था जब छपरा विधानसभा क्षेत्र में यादव और मुस्लिम वोट बैंक (लगभग 35%) निर्णायक भूमिका निभाते थे. लेकिन पिछले दो दशकों में यह समीकरण पूरी तरह बदल गया है. वैश्य मतदाता अब यहां चुनावी हवा तय करते हैं.
वैश्य मतदाता (लगभग 30%): शहरी क्षेत्र में इनकी संख्या सबसे अधिक है. पिछले तीन चुनावों में बीजेपी को इन्हीं मतदाताओं का एकतरफा और सीधा लाभ मिला है. इसमें अगर राजपूत वोट भी जोड़ लें तो ये मुस्लिम-यादव से आगे निकल जाएगा.
यादव-मुस्लिम मतदाता (लगभग 35%): यह पारंपरिक वोट बैंक अब भी महत्वपूर्ण है. इस बार वैश्य वोटों का बंटवारा ही इस सीट के परिणाम की दिशा तय करेगा.
मैदान में दिग्गज और 'तीसरे' का फैक्टर
बीजेपी ने 30 अक्टूबर को पीएम मोदी की जनसभा भी छोटी कुमारी के समर्थन में आयोजित करवाई थी, जो इस सीट के महत्व को दर्शाता है. दूसरी ओर, जनसुराज पार्टी से जेपी सिंह भी मैदान में हैं.
हालांकि, पिछले विधानसभा चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि छपरा में तीसरे स्थान पर रहे उम्मीदवार को अक्सर अधिक वोट नहीं मिलते थे, लेकिन इस बार राखी गुप्ता का कद और उनका आधार समीकरण को बदल सकता है. उनका निर्दलीय खड़ा होना केवल वोटों का बंटवारा नहीं कर रहा है, बल्कि छपरा के चुनावी इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ रहा है.














