बिहार : CM नीतीश कुमार ने पार्टी के पोस्टर से ललन सिंह और आरसीपी सिंह को क्यों किया बाहर?

इस फैसले के पीछे उमेश कुशवाहा ने तर्क यह दिया है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार के सर्वमान्य नेता हैं, इसलिए जब भी कोई कार्यक्रम हो तो उसके लिए बैनर पोस्टर में केवल उनकी तस्वीर हो.

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार.
पटना:

जनता दल यूनाइटेड के कार्यक्रम या किसी बैनर पोस्टर में अब सिर्फ बिहार के मुख्यमंत्री और पार्टी सुप्रीमो नीतीश कुमार की ही तस्वीर रहेगी. यह फरमान नीतीश कुमार के इशारे पर बिहार इकाई के अध्यक्ष उमेश कुशवाहा ने जारी किया है. इसका सीधा मतलब ये लगाया जा रहा हैं कि पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई में उलझे राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ़ ललन सिंह और केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह अब पोस्टर बैनर में नहीं दिखेंगे.

इस फैसले के पीछे उमेश कुशवाहा ने तर्क यह दिया है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार के सर्वमान्य नेता हैं, इसलिए जब भी कोई कार्यक्रम हो तो उसके लिए बैनर पोस्टर में केवल उनकी तस्वीर हो. और साथ में कुशवाहा ने ये भी सलाह दी है कि किसी अन्य नेता की तस्वीर लगाने की गलती किसी नेता या कार्यकर्ता को नहीं करना चाहिए. ऐसा ना करने पर पार्टी अनुशासनहीनता मानते हुए वैसे नेताओं पर कार्रवाई भी करती है.

माना जा रहा है कि नीतीश के अलिखित आदेश के बाद ही उमेश कुशवाहा ने सार्वजनिक रूप से पोस्टर बैनर में केवल नीतीश की तस्वीर लगाने का आदेश जारी किया है. नीतीश को ललन सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी में बढ़ी गुटबाज़ी का आभास और अन्दाजा है. दोनों के समर्थकों द्वारा पोस्टरबाजी से खुश नहीं थे, जिसमें ललन समर्थक आरसीपी का और उनके समर्थक ललन कि तस्वीर डालने से परहेज़ करते हैं.

हालांकि, इस आदेश के बाद पार्टी के आदर्श जैसे सरदार पटेल हो या पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की तस्वीर भी अब देखने को नहीं मिलेगी. क्योंकि नीतीश कुमार को लगता है कि अब उनका कद उन नेताओं से कहीं अधिक बड़ा है. उन्होंने जो सुशासन का राज कायम किया है, वैसे में जनता चाहे किसी वर्ग की हो उनको देखकर वोट देती है. और ये बात कुछ हद तक सच भी है क्योंकि ललन सिंह विधानसभा चुनाव में जहां अपने संसदीय क्षेत्र में उनकी पार्टी को मिली तीन सीटों में से कोई भी सीट जीता पाने में कामयाब नहीं रहे. इसके अलावा हालही में संपन्न विधान परिषद के चुनाव में मुंगेर और पटना सीट दोनों सीट राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवारों के हाथ ना केवल हारे बल्कि जीतने वाले उन्हीं की जाति के थे. जिससे साफ था कि उनका प्रभाव अपने जाति के वोटर पर भी अब नहीं रहा.

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