- बिहार चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश कार्यालय पर टिकट के लिए नेताओं और कार्यकर्ताओं की भीड़ लगी रहती है
- आरजेडी के महासचिव आसिफ जमाल मुन्ना खान ने पार्टी सेवा का अनुभव बताते हुए टिकट की दावेदारी की है
- कई वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने पार्टी में लंबी सेवा का हवाला देते हुए स्थानीय नेताओं को टिकट मिलने की मांग की है
बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. एनडीए और महागठबंधन में किस सहयोगी दल को कितनी सीटें मिलेंगी, उस पर राजनीतिक पंडित अपना सिर खपाए हुए हैं. लेकिन एक होड़ पार्टी के अंदर प्रत्याशियों के टिकट लेने को लेकर भी है. राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के पटना स्थित प्रदेश कार्यालय पर आजकल कार्यकर्ताओं और दावेदारों का तांता लगा हुआ है. टिकट की आस में बिहार के कोने-कोने से नेता अपना बायोडाटा जमा कराने और लालू यादव और तेजस्वी तक अपनी अर्जी पहुंचा रहे हैं. पार्टी ऑफिस के अंदर और बाहर, हर तरफ टिकट पाने की होड़ साफ दिखाई दे रही है.
टिकट के लिए दावेदारी: 'हम आरजेडी के दरख़्त की जड़ें हैं'
कार्यालय के बाहर अपनी दावेदारी पेश करते हुए आसिफ जमाल मुन्ना खान चैनपुर विधानसभा (कैमूर) से आए हैं. वो कहते हैं "मैं राष्ट्रीय जनता दल का बिहार प्रदेश का महासचिव हूं... टिकट चाहता हूं. पार्टी की सेवा किए लगभग जब से आरजेडी की स्थापना हुई, उससे पहले भी जब जनता दल था, तब से मैं लालू जी के साथ हूं. वो पार्टी के सुप्रीमो हैं और मैं उनके ही आदेश को फाइनल मानता हूं...अगर टिकट मिलता है तो जीत के आऊंगा."
वहीं, भभुआ विधानसभा से आए एक अन्य वरिष्ठ कार्यकर्ता ने 40 वर्ष की सेवा का हवाला देते हुए कहा, "हम पार्टी में 40 वर्ष सेवा किए हैं. हम लोग चाहते हैं कि बाहरी खिलाड़ियों से ना हो. कार्यकर्ता और जमीनी नेताओं को टिकट मिलना चाहिए. बाहरी खिलाड़ी से काम नहीं चलेगा."
सिटिंग सीट पर भी दावेदारी: 'हम तो सिपाही हैं'
दिलचस्प बात यह है कि दावेदारी सिर्फ विपक्षी पार्टियों के कब्जे वाली सीटों पर ही नहीं, बल्कि RJD की सिटिंग सीटों पर भी है. रफीगंज विधानसभा के पूर्व प्रत्याशी मोहम्मद अलाउद्दीन ने बताया, "हम 2015 में रफीगंज के पूर्व प्रत्याशी थे. अब हम आरजेडी में आ गए, तेजस्वी जी से प्रभावित हुए. 2020 में टिकट चाहते थे, लेकिन नहीं मिला. अभी जहां से टिकट चाहिए, वहां सीटिंग MLA है आरजेडी का. फिर भी हम अपनी दावेदारी कर रहे हैं."
'35 साल वाले वर्कर' की निष्ठा और संघर्ष
दरभंगा से आए सुभाष पासवान, जो अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के प्रदेश महासचिव हैं, ने अपनी 35 साल की सेवा का हवाला देते हुए अपनी दावेदारी पेश की. उन्होंने कहा, "हर 5 साल पर हम उस प्रतीक्षा में लगे रहते हैं कि हम लोग आएं, अपनी दावेदारी दें और नेता को यदि हम पर नजर पड़ेगा, तो हमको भी सेवा करने का मौका मिले." यह पूछने पर कि नेता की नजर कैसे पड़ेगी, उन्होंने सीधा जवाब दिया, "नजर यही पड़ेगा काम से. हमने जो काम किया है, हमको मजदूरी मिलेगा."
'इच्छा तो सबकी होती है, आला कमान का आदेश सर्वोपरि'
सहरसा से आए एक अन्य कार्यकर्ता ने चुनाव के माहौल को देखते हुए कार्यालय आने की बात कही. टिकट की चाहत पर उन्होंने बताया कि फील्डिंग हमेशा मजबूत रहनी चाहिए, तभी काम होता है.
पार्टी कार्यालय का हाल: 'रोज 2000 लोग आते हैं'
आरजेडी कार्यालय के प्रभारी ने बताया कि कार्यालय में किस तरह काम होता है. उन्होंने बताया कि रोज करीब-करीब 2000 लोग आते हैं. जो यहां पर बायोडाटा जमा होता है, पार्टी ऑफिस में और बायोडाटा का यहां कंप्यूटर से लिस्टिंग करके हम लोग तेजस्वी जी को भेजते हैं. वहां जो चुनाव समिति है, वो बैठकर डिसीजन करती है कि कहां से कौन लड़ेगा."