बिहार चुनाव 2025: छपरा में 7,600 वोटों से हार गए खेसारी लाल यादव, बीजेपी की छोटी कुमारी को मिली जीत

1957 में गठन के बाद से छपरा विधानसभा सीट पर अब तक 17 बार चुनाव हो चुके हैं. 1957 में हुए पहले चुनाव में यहां कांग्रेस के राम प्रभुनाथ सिंह ने चुनाव जीता था. कांग्रेस ने यहां चार बार जीत हासिल की है, आखिरी जीत 1972 में मिली. 

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बिहार की छपरा विधानसभा सीट पर राजद से टिकट लेकर चुनावी मैदान में उतरे भोजपुरी स्‍टार खेसारी लाल यादव उर्फ शत्रुघ्‍न यादव चुनाव हार गए हैं. उन्‍हें करीब 80 हजार वोट मिले, लेकिन बीजेपी के टिकट पर उतरीं छोटी कुमारी करीब 87,000 वोट लाकर उनसे आगे निकल गईं. इस तरह उन्‍होंने बीजेपी से ही विधायक रहे सीएन गुप्‍ता की सीट पार्टी के लिए बरकरार रखी. 

यहां अबतक हुए चुनावों में जनता ने अलग-अलग राजनीतिक दलों और नेताओं को मौका दिया. पिछले दो चुनाव में यह सीट भाजपा के पास रही है, लेकिन पूर्व में इस सीट पर कांग्रेस का भी दबदबा रह चुका है. इस बार के चुनाव में भाजपा जीत की हैट्रिक लगाना चाहेगी.  

कब-कब किसने मारी बाजी?

1957 में गठन के बाद से छपरा विधानसभा सीट पर अब तक 17 बार चुनाव हो चुके हैं. 1957 में हुए पहले चुनाव में यहां कांग्रेस के राम प्रभुनाथ सिंह ने चुनाव जीता था. कांग्रेस ने यहां चार बार जीत हासिल की है, आखिरी जीत 1972 में मिली. 

छपरा की जनता ने 2005 के चुनाव में जदयू के राम परवश राय को चुनाव जिताकर विधानसभा भेजा. 2010 में यह सीट भाजपा के खाते में आई, लेकिन 2014 के उपचुनाव में राजद के रणधीर कुमार सिंह इस सीट से जीत गए. 2015 के चुनाव में भाजपा ने वापसी की और 2020 में भाजपा के सीएन गुप्ता यहां से लगातार दूसरी बार विधायक बने.

छपरा सीट पर जातिगत समीकरण 

छपरा विधानसभा सीट पर वैश्य, यादव और मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं. इनके अलावा ब्राह्मण, राजपूत, कुशवाहा, पासवान और ईबीसी वर्ग के मतदाताओं की भी अच्छी-खासी संख्या है, जो चुनाव परिणामों पर अपना असर छोड़ती है.

छपरा का इतिहास और भूगोल 

छपरा विधानसभा सीट सारण लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है. छपरा न सिर्फ एक प्रमुख शहरी केंद्र है, बल्कि यह सारण प्रमंडल का मुख्यालय भी है. शहर की भौगोलिक स्थिति इसे और भी विशेष बनाती है. यह घाघरा नदी के उत्तरी तट पर बसा है और गोरखपुर-गुवाहाटी रेलमार्ग पर स्थित एक महत्वपूर्ण रेलवे जंक्शन है. यहां से गोपालगंज और बलिया की ओर रेल लाइनें जाती हैं, जिससे यह व्यापार और आवागमन का प्रमुख केंद्र बन चुका है.

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छपरा का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा है. यह क्षेत्र कभी कोसल साम्राज्य का हिस्सा रहा है. 9वीं शताब्दी के महेंद्र पाल देव के शासनकाल से इसका पहला लिखित उल्लेख मिलता है. कहा जाता है कि यहां के दाहियावां मुहल्ले में दधीचि ऋषि का आश्रम था. इसके पास ही रिविलगंज में गौतम ऋषि का आश्रम स्थित है, जहां कार्तिक पूर्णिमा को मेला लगता है.

ऐतिहासिक शहर है छपरा 

छपरा से जुड़ी एक और महत्वपूर्ण धार्मिक कथा अंबिका भवानी मंदिर से संबंधित है. कहा जाता है कि यहीं राजा दक्ष का यज्ञकुंड था, जिसमें देवी सती ने भगवान शिव के अपमान के बाद आत्मदाह किया था. इसके अलावा रामपुर कल्लन गांव, जो छपरा से लगभग 10 किलोमीटर उत्तर में स्थित है, स्वतंत्रता संग्राम में अपनी सक्रिय भूमिका के लिए जाना जाता है. यहां के सरदार मंगल सिंह स्वतंत्रता सेनानी के रूप में प्रसिद्ध थे.

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16वीं शताब्दी में अकबर के शासनकाल के दौरान ‘आइन-ए-अकबरी' में भी छपरा का उल्लेख मिलता है. ब्रिटिश काल में यह एक प्रमुख नदी बाजार के रूप में विकसित हुआ, जहां डच, फ्रांसीसी, पुर्तगालियों और अंग्रेजों ने शोरा (साल्टपीटर) के अपने शोधन केंद्र स्थापित किए.

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