बिहार की बरबीघा विधानसभा सीट 2025 में भी राज्य की सबसे दिलचस्प सीटों में से एक बनने जा रही है. ये वो सीट है, जहां हर एक वोट मायने रखता है. यहां जातिगत समीकरण, विकास और व्यक्तिगत लोकप्रियता का मिश्रण ही जीत-हार का फैसला करता है. 2020 में महज 113 वोटों से जीत हासिल करने वाली जनता दल (यूनाइटेड) के लिए इस बार अपनी सीट बचाना एक बड़ी चुनौती होगी. मौजूदा स्थिति की बात करें तो यहां कुल वोटर करीब 2.6 लाख हैं. 2020 में जदयू के सुधीर कुमार सिन्हा ने यहां जीत दर्ज की थी और वो मौजूदा विधायक हैं.
आम चुनाव में संकेत
हाल ही में हुए 2024 के लोकसभा चुनाव में बरबीघा विधानसभा क्षेत्र में NDA को लगभग 29,000 वोटों की भारी बढ़त मिली है. यह आंकड़ा साफ बताता है कि जमीनी स्तर पर NDA की पकड़ मजबूत हो रही है, जो आगामी विधानसभा चुनाव के लिए एक शुभ संकेत है. हालांकि, मौजूदा विधायक सुदर्शन कुमार की अपनी लोकप्रियता और कांग्रेस के गजानंद शाही की मजबूत उपस्थिति इस लड़ाई को और भी रोचक बना देती है.
बरबीघा का चुनावी इतिहास
इस सीट ने पिछले एक दशक में कई बार सियासी रंग बदला है. 2010 में यहां जेडीयू के टिकट पर गजानंद शाही ने कांग्रेस के अशोक चौधरी को हराया. 2015 में कांग्रेस ने जोरदार वापसी की और सुदर्शन कुमार ने RLSP उम्मीदवार को 15,717 वोटों के बड़े अंतर से मात दी. वहीं, 2020 में चुनावी इतिहास की सबसे कड़ी टक्कर देखने को मिली. सुदर्शन कुमार इस बार जेडीयू के टिकट पर उतरे और उन्होंने कांग्रेस के गजानंद शाही को सिर्फ 113 वोटों के बेहद कम अंतर से हराया.
जातिगत समीकरण
बरबीघा की राजनीति में जातिगत समीकरण हमेशा से ही सबसे निर्णायक रहे हैं. यहाँ कुर्मी (25%), यादव (20%), ब्राह्मण (10%) और दलित (15%) मतदाताओं की बड़ी आबादी है. इसके अलावा, अन्य पिछड़ा वर्ग (20%) भी चुनाव परिणामों को प्रभावित करता है. जातिगत समीकरणों के साथ-साथ विकास के मुद्दे भी यहां महत्वपूर्ण हैं, लेकिन अक्सर जीत-हार का फैसला जातिगत आधार पर ही होता है.
बरबीघा के प्रमुख मुद्दों की बात करें तो यहां विकास और बुनियादी सुविधाओं की कमी एक बड़ी चुनौती है. यहां के लोग शिक्षा की गिरती गुणवत्ता, पेयजल की समस्या, स्वास्थ्य केंद्रों का अभाव, किसानों की आय में गिरावट और युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी से जूझ रहे हैं.
रोमांचक मुकाबले की उम्मीद
बरबीघा विधानसभा सीट पर कुर्मी बहुलता और बुनियादी सुविधाओं की कमी, दोनों ही मुद्दे 2025 के चुनाव में अहम भूमिका निभाएंगे. 2020 में बहुत कम अंतर से मिली जीत और 2024 के लोकसभा चुनाव में NDA की मजबूत बढ़त, ये दोनों ही कारक इस सीट को फिर से एक रोमांचक मुकाबला बनाएंगे. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या जेडीयू विकास और स्थिरता का संदेश देकर अपनी सीट बचा पाती है या विपक्ष जाति और मुद्दों की राजनीति से सत्ता की चाभी छीन लेता है.