सोनपुर: एशिया के सबसे बड़े पशु मेले में 'पशुओं' की किल्लत, पक्षी बाजार भी पड़ा है सुनसान

सोनपुर पशु मेला यूं तो एशिया के सबसे बड़ा पशु मेले के रूप में चर्चित है, मगर इस बार इस मेले में पशुओं की तादाद ही कम हो गई है और मनोरंजन के साधन व खाने-पीने के चीजों की दुकानें बढ़ गई हैं.

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गंगा और गंडक नदी के संगम पर लगने वाला यह मेला कार्तिक पूर्णिमा से शुरू होता है.
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  • एशिया के सबसे बड़ा पशु मेले के रूप में है चर्चित
  • हर साल पशुओं की संख्या हो रही है कम
  • एक महीने चलता है मेला
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हाजीपुर: बिहार (Bihar) के सारण और वैशाली जिले की सीमा पर स्थित सोनपुर (Sonpur Mela) में हर साल लगनेवाला सोनपुर पशु मेला यूं तो एशिया के सबसे बड़ा पशु मेले के रूप में चर्चित है, मगर इस बार इस मेले में पशुओं की तादाद ही कम हो गई है और मनोरंजन के साधन व खाने-पीने के चीजों की दुकानें बढ़ गई हैं. मेला आयोजक भी मानते हैं कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के कारण मेले के स्वरूप में ही बदलाव आ गया है. पिछले 30 वर्षो से हर बार सोनपुर पशु मेले में अपने घोड़ों को लेकर आ रहे बगहा के घोड़ा व्यापारी हरिहर सिंह भी मेले में आने वाले पशुओं की कमी से चिंतित हैं. वह कहते हैं कि इस साल घोड़ा बाजार में घोड़ों की वृद्धि जरूर देखी जा रही है, लेकिन बाकी पशुओं की तादाद में कमी आई है. 

इस साल हरिहर सिंह अपने घोड़े 'चेतक' के साथ लेकर मेले में पहुंचे हैं. इसकी कीमत उन्होंने 1.50 लाख रुपए रखी है. उन्हें लेकिन इसके खरीदार मिलने की उम्मीद कम नजर आ रही है. वह कहते हैं, 'पहले इस मेले में कीमती पशु लाए जाते थे तो वैसे ग्राहक भी यहां पहुंचते थे. आज स्थिति बदल गई है. अब घोड़ों की जगह लोग महंगी मोटरसाइकिल खरीदना चाहते हैं. पहले घोड़ों को शान की सवारी समझी जाती थी, मगर आज स्थिति बदल गई है.'

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एक और घोड़ा व्यापारी कहते हैं कि ऐसी स्थिति वन्यजीव संरक्षण अधिनियम और पशु क्रूरता अधिनियम के कारण हुई है. वे कहते हैं कि पहले इस मेले में घोड़ों और हाथियों के दौड़ का आयोजन किया जाता था, लेकिन अब इस मेले में हाथी तो शायद ही आते हैं. 

बिहार के सोनपुर में गंगा और गंडक नदी के संगम पर लगने वाले यह मेला कार्तिक पूर्णिमा से प्रारंभ होता है जो एक महीने तक चलता है. इस मेले के संदर्भ में कहा जाता है कि पहले यहां राजा-महाराजा या उनके मंत्री हाथी, घोड़ा खरीदने पहुंचते थे. 

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सोनपुर हरिहरनाथ मंदिर समिति के सदस्य चंद्रभूषण तिवारी कहते हैं कि लोगों की जीवनशैली और लोगों की बदलती आवश्यकताओं के कारण भी सोनपुर मेला प्रभावित हुआ है. वह कहते हैं, 'घोड़ा, हाथी की बात छोड़ दीजिए अब कितने लोग गाय और बैल पालते हैं? आज लोग इस मेले में आम मेले की तरह ही घूमने आते हैं, जहां 'मौत का कुआं', 'थियेटर' देखकर मनोरंजन कर, सामानों की खरीदारी कर और कुछ खा-पीकर वापस घर चले जाते हैं.'

वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के उपनिदेशक समीर सिन्हा ने बताया कि साल 2002 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में संशोधन के बाद पशुओं की खासकर हाथी की खरीद-बिक्री पर रोक लगी है.

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इधर, सोनपुर मेला में पक्षी बाजार भी सुनसान पड़ा है. सारण जिला प्रशासन भी आंकड़ों के हवाले से कहता है कि वर्ष 2004 में जहां इस मेले में 10,890 गाय, 1,32,794 बैल, 15,035 घोडे पहुंचे थे वहीं पिछले वर्ष मेले में 105 गाय, 1200 बैल और 5400 घोड़े ही इस मेले में पहुंचे थे. सारण के एक अधिकारी ने नाम न जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि अब 'हाथी स्नान' का आयोजन भी हाथियों के नहीं आने के कारण नहीं हो पा रहा है. पहले इस आयोजन को देखने के लिए देश-विदेश के लोग यहां पहुंचते थे. 

बहरहाल, बिहार राज्य पर्यटन विभाग भले ही इस मेले को पुराने स्वरूप में लाने और सैलानियों को आकर्षित करने के लिए लाख प्रयास कर रहा हो, मगर ग्रामीण परिवेश वाले इस ऐतिहासिक, सांस्कृतिक मेले को पुराने स्वरूप में लाने के लिए कई महत्वपूर्ण बदलाव करने की जरूरत है. इस साल इस मेले का उद्घाटन 21 नवंबर को राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने किया था. यह मेला 23 दिसंबर तक चलेगा.

(इनपुट- आईएएनएस)

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