बिहार में शराब पर 'महाभारत', प्रशांत किशोर के दावे पर JDU-RJD ने बोला धावा

प्रशांत किशोर के इस बयान ने बिहार की राजनीति को फिर से गर्मा दिया है. जेडीयू इसे गांधीवादी विचारों और नीतीश कुमार की छवि से जोड़कर पेश कर रही है, जबकि आरजेडी समीक्षा की बात कर बीच का रास्ता निकालने की कोशिश में है.

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  • प्रशांत किशोर ने कहा कि उनकी पार्टी बिहार में सत्ता में आई तो शराबबंदी कानून को एक घंटे के भीतर खत्म कर देंगे.
  • जेडीयू ने प्रशांत किशोर के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए इसे गांधीवादी विचारधारा के खिलाफ और विरोधाभासी बताया.
  • आरजेडी ने कहा कि शराबबंदी कानून महागठबंधन ने शुरू किया था और इसे बेहतर बनाने के लिए समीक्षा जरूरी है.
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जन सुराज अभियान के संस्थापक प्रशांत किशोर ने बड़ा राजनीतिक बयान देते हुए कहा है कि अगर उनकी पार्टी बिहार में सत्ता में आती है तो शराबबंदी कानून को “एक घंटे के भीतर खत्म” कर देंगे. उनके इस बयान पर सत्ताधारी जेडीयू और विपक्षी आरजेडी दोनों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. प्रशांत किशोर ने कहा कि बिहार में लागू शराबबंदी कानून पूरी तरह असफल रही है. लोगों के जीवन और समाज पर इसका सकारात्मक असर नहीं पड़ा, बल्कि अवैध शराब का कारोबार और अपराध बढ़े हैं. उन्होंने जनता से वादा किया कि अगर जन सुराज को सरकार बनाने का मौका मिलता है, तो उनकी कैबिनेट की पहली बैठक में ही इस कानून को खत्म कर दिया जाएगा.

जेडीयू का हमला

जेडीयू ने प्रशांत किशोर के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी. पार्टी नेता खालिद अनवर ने कहा कि शराबबंदी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का ड्रीम प्रोजेक्ट है, जिसे गांधीवादी विचारधारा से प्रेरणा मिली थी. जेडीयू प्रवक्ताओं ने तंज कसा कि “प्रशांत किशोर को पहले अपने झंडे से महात्मा गांधी की तस्वीर हटा देनी चाहिए. एक तरफ वे गांधी का नाम और तस्वीर का इस्तेमाल करते हैं और दूसरी ओर शराबबंदी खत्म करने की बात करते हैं — यह पूरी तरह विरोधाभास है.”

आरजेडी का रुख

आरजेडी ने भी पीके पर निशाना साधा, लेकिन अलग अंदाज़ में. पार्टी नेता मृत्युंजय तिवारी का कहना है कि शराबबंदी कानून की शुरुआत महागठबंधन सरकार ने की थी और यह जनता की मांग पर लाया गया था. हालांकि, जब एनडीए की सरकार बनी तो इसके क्रियान्वयन में कई खामियां रह गईं और यह कानून विफल साबित हुआ. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि अगर उनकी सरकार सत्ता में आती है तो शराबबंदी कानून की “समीक्षा” की जाएगी, ताकि यह देखा जा सके कि इसे किस तरह प्रभावी बनाया जा सकता है.

नीति पर सवाल और राजनीति का रंग

बिहार में शराबबंदी अप्रैल 2016 में लागू की गई थी. इसका मकसद घरेलू हिंसा, अपराध और नशे की बुराई को खत्म करना बताया गया था, लेकिन पिछले कई वर्षों में इस पर लगातार बहस होती रही है. एक तरफ कई लोग इसे सामाजिक सुधार बताते हैं, तो दूसरी तरफ इसे “असफल प्रयोग” मानने वाले भी कम नहीं हैं. अवैध शराब और तस्करी की खबरें अक्सर सुर्खियों में रहती हैं.

अब प्रशांत किशोर के इस बयान ने बिहार की राजनीति को फिर से गर्मा दिया है. जेडीयू इसे गांधीवादी विचारों और नीतीश कुमार की छवि से जोड़कर पेश कर रही है, जबकि आरजेडी समीक्षा की बात कर बीच का रास्ता निकालने की कोशिश में है.

निष्कर्ष

शराबबंदी पर प्रशांत किशोर का वादा और जेडीयू-आरजेडी की प्रतिक्रियाएं बिहार के चुनावी विमर्श में इसे फिर से बड़ा मुद्दा बना रही हैं. आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता इस कानून को लेकर किस पक्ष की बात पर भरोसा करती है — पूर्ण समाप्ति, समीक्षा या सख़्ती से लागू करना.

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