- बिहार के सीमांचल में 2025 चुनाव से पहले राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा ने चुनावी माहौल को गर्मा दिया है.
- सीमांचल के चार जिलों में मुस्लिम आबादी काफी ज्यादा है, जो चुनावी नतीजों को निर्णायक रूप से प्रभावित करता है.
- विशेष गहन पुनरीक्षण में सीमांचल के चार जिलों से 7 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटाए गए हैं.
बिहार की राजनीति में सीमांचल एक ऐसा क्षेत्र है जो हमेशा से 'किंगमेकर' की भूमिका में रहा है. लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की 'मतदाता अधिकार यात्रा' इस क्षेत्र में 2025 के विधानसभा चुनावों से पहले एक नई चुनावी तपिश लेकर आई है. ये यात्रा न सिर्फ कांग्रेस बल्कि 'इंडिया' गठबंधन के लिए भी एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है. राहुल गांधी की यात्रा, सीमांचल के सियासी समीकरणों और हाल के चुनावी नतीजों पर नजर डालें तो वोटर लिस्ट रिवीजन यहां एक बड़ा मुद्दा है और अगर सुधार नहीं हुए तो चुनाव परिणामों पर इनका असर पड़ सकता है.
सीमांचल का सियासी गणित और राहुल की यात्रा
सीमांचल के चार जिलों, कटिहार, पूर्णिया, अररिया और किशनगंज में कुल 24 विधानसभा सीटें आती हैं. इन जिलों की सियासत जातीय और धार्मिक समीकरणों पर आधारित है, जहां मुस्लिम आबादी की हिस्सेदारी काफी ज्यादा है. किशनगंज में 68%, अररिया में 43%, कटिहार में 45% और पूर्णिया में 39% मुस्लिम आबादी है, जो इन सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाती है.
सीमांचल में राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा जारी है और ये तीन जिलों की आठ विधानसभा सीटों को कवर कर रही है, जिनमें कटिहार का बरारी, कोढ़ा, कटिहार, कदवा, जबकि पूर्णिया का कसबा, पूर्णिया सदर और अररिया का अररिया और नरपतगंज शामिल हैं. राहुल गांधी इस यात्रा के जरिये उन मतदाताओं को संदेश देने की कोशिश करेंगे, जिनके नाम विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) के दौरान वोटर लिस्ट से हटाए गए हैं.
सीमांचल के कहां कितने वोटर्स के नाम हटाए गए?
विशेष गहन पुनरीक्षण के तहत, सीमांचल के चारों जिलों से 7 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटाए गए हैं. हालांकि चुनाव आयोग ने आश्वस्त किया है कि ऑनलाइन या ऑफलाइन आवेदन के जरिये नाम जुड़वाया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने फैसले में दोहराया है कि आधार को भी वैध दस्तावेज माना जाए.
- किशनगंज: 1,45,668 वोटर्स के नाम हटाए गए.
- पूर्णिया: 2,73,920 वोटर्स के नाम हटाए गए.
- कटिहार: 1,84,254 वोटर्स के नाम हटाए गए.
- अररिया: 1,58,072 वोटर्स के नाम हटाए गए.
इतनी बड़ी संख्या में वोटरों के नाम हटने से सियासी दलों, खासकर विपक्षी पार्टियों को चिंता है, क्योंकि इसका सीधा असर चुनाव परिणामों पर पड़ सकता है.
विधानसभा चुनावों में सीटों का गणित
सीमांचल में कांग्रेस और राजद वाले महागठबंधन का दबदबा रहा है. वहीं ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने जब से सीमांचल में एंट्री मारी है, तब से सियासी समीकरण बदल गए हैं. कुछ सीटों पर नतीजे लगातार बदलते भी रहे हैं. 2015 विधानसभा चुनाव में महागठबंधन ने बेहतर प्रदर्शन किया था. आरजेडी ने 9, जेडीयू ने 5 और कांग्रेस ने 5 सीटें जीती थीं. बीजेपी को सिर्फ 5 सीटें मिली थीं. वहीं 2020 विधानसभा चुनाव में AIMIM (असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी) के उभार ने 'इंडिया' गठबंधन का खेल बिगाड़ दिया, जिससे भाजपा को अप्रत्याशित लाभ मिला.
यहां कांग्रेस महज 5 सीटें ला पाई, जबकि आरजेडी और सीपीआई (एमएल) महज 1-1 सीट पर सिमट गई. 8 सीटें जीतकर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी, जबकि जेडीयू को 4 सीटें मिलीं. AIMIM ने यहां 5 सीटें जीतकर कमाल तो किया, लेकिन बाद में इसके 4 विधायक आरजेडी में शामिल हो गए.
सीमांचल में 'इंडिया' गठबंधन की एकजुटता
राहुल गांधी की इस यात्रा में तेजस्वी यादव और सीपीआई (एमएल) के नेता दीपांकर भट्टाचार्य भी साथ हैं, जिससे 'इंडिया' गठबंधन एकजुटता का संदेश देने की कोशिश कर रहा है. पूर्णिया के सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव भी इस यात्रा में नजर आ सकते हैं, जिससे गठबंधन को और मजबूती मिलने की उम्मीद है.
इस बार कितना अलग है सियासी समीकरण
AIMIM ने 2020 में मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण करके चौंकाने वाले नतीजे दिए थे. इस बार भी यह पार्टी अकेले दम पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है, जिससे मुस्लिम वोटों का बंटवारा हो सकता है. वहीं प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी भी धीरे-धीरे अपनी पहुंच बना रही है. इस पार्टी ने उपचुनावों में भले ही सीटें न जीती हों, लेकिन दूसरी पार्टियों के वोट बैंक में सेंधमारी की क्षमता जरूर दिखाई है.
भाजपा भी दलितों और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) के वोटों पर ध्यान केंद्रित कर रही है. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ दिलीप जायसवाल का गृह जिला किशनगंज होने के कारण भाजपा की जीत-हार पर यहां की सियासत का खास ध्यान रहेगा.
2025 के विधानसभा चुनाव में सीमांचल एक महत्वपूर्ण रणभूमि साबित हो सकता है, जहां मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण, AIMIM का प्रभाव और एनडीए की जातीय रणनीति, चुनावी लड़ाई को दिलचस्प बना सकते हैं.