बिहार में अब भाजपा हर मुद्दे पर नीतीश कुमार को याद दिलाती है उनकी नंबर दो की हैसियत...

भाजपा ने पिछले कई महीनों से उतर प्रदेश में चुनाव में गठबंधन के इच्छुक नीतीश कुमार के प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया और उन्हें अकेले चुनाव लड़ने पर मजबूर किया है

विज्ञापन
Read Time: 17 mins
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (फाइल फोटो).
पटना:

बिहार में भले मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नीतीश कुमार बैठे हों लेकिन सरकार और गठबंधन पर भाजपा का दबदबा बढ़ता जा रहा है. हर मुद्दे पर नीतीश कुमार की मांग को न केवल ख़ारिज कर दिया जाता है बल्कि उन्हें नसीहत भी सार्वजनिक रूप से दी जाने लगी है. हालांकि भाजपा के नेता ऑन रि‍कॉर्ड ये बात ज़रूर दोहराते हैं कि सरकार को ना कोई ख़तरा है और सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है. ताज़ा घटनाक्रम में राजनीतिक फ़्रंट पर ना केवल भाजपा ने पिछले कई महीनों से उतर प्रदेश में चुनाव में गठबंधन के इच्छुक नीतीश कुमार के प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया और उन्हें अकेले चुनाव लड़ने पर मजबूर किया है बल्‍क‍ि विधान परिषद के संभावित 24 सीटों के चुनाव को लेकर भी जेडीयू की उम्‍मीदों पर पानी फेर दिया है. नीतीश कुमार आधी-आधी मतलब 12-12 सीटों के समझोते को लेकर उम्मीद पाले बैठे थे, उस पर केंद्रीय नेतृत्व से बातचीत कर उप मुख्यमंत्री तार किशोर प्रसाद ने ये कह कर पानी फेर दिया कि चूंकि भाजपा के वर्तमान में 13 सिटिंग विधान पार्षद हैं इसलिए वो अपने सभी सीटों पर लड़ेगी. इसका मतलब यही निकला कि नीतीश कुमार को मात्र 11 सीटों से संतोष करना होगा जो सार्वजनिक रूप से उनके समर्थकों के गले नहीं उतर रहा. उनका कहना है कि भाजपा अब बड़े भाई की भूमिका में आ गयी है और अपना निर्णय एकतरफ़ा सार्वजनिक रूप से सुनाती है.

वहीं दूसरी और भाजपा के नेता मानते हैं कि जैसे जनता दल यूनाइटेड के नेता, ख़ासकर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और उपेन्द्र कुशवाहा द्वारा सम्राट अशोक के बारे में एक किताब में लिखी कुछ लाइनों को लेकर पार्टी को घेरने की कोशिश हुई तो राज्य के नेताओं को एकजुट होकर उसका जवाब देना पड़ा. वैसे ही विशेष राज्य के दर्जा का मुद्दा हो या जातिगत जनगणना का, उस पर नीतीश कुमार के इशारे पर भाजपा को विलेन बनाने की कोशिश की जाती है और दोनों मुद्दों पर बिहार इकाई के अध्यक्ष डॉक्टर संजय जायसवाल ने सब कुछ सार्वजनिक कर दिया है. जिसका लब्बोलुबाब यही था कि विशेष राज्य का दर्जा संभव नहीं है क्योंकि इसका प्रावधान ख़त्म हो चुका है और दूसरा जातिगत जनगणना नीतीश चाहे तो करा सकते हैं, पार्टी को कोई ऐतराज नहीं है.

भाजपा का कहना है कि नीतीश कुमार को इस बात का शुक्रगुज़ार रहना चाहिए कि 30 से अधिक सीटों का फ़ासला होने के बाबजूद पार्टी ने उनको मुख्यमंत्री बनाने का अपना वादा निभाया लेकिन उल्टे इस बात का एहसानमंद होने की बजाय वो पार्टी के नेताओं को नीचा दिखाने में लगे रहते हैं. उप मुख्यमंत्री तार किशोर प्रसाद की बात उनके विभाग के प्रधान सचिव आनंद किशोर नहीं सुनते लेकिन नीतीश के दरबार में उनकी पहुंच के कारण उप मुख्यमंत्री की नये प्रधान सचिव की मांग को नहीं सुना जाता. वैसे ही पिछले विधानसभा सत्र के दौरान नीतीश भाजपा के एक विधायक स्वीटी हेमब्रम पर शराबबंदी के मामले पर आग बबूला हो गये थे लेकिन उसके बाद पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने ऐसे अपमान ना सहने की हिदायत दी है कि कोई छेड़े तो छोड़ो मत.

Advertisement

इन सभी घटनाक्रम के बाद जनता दल यूनाइटेड के नेता मान रहे हैं कि अब पहले जैसी बात नहीं रही. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पटना के एक कार्यक्रम में जब नीतीश कुमार के पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने की मांग ख़ारिज की, उस समय सबको आभास हो गया था कि भाजपा इस बार नीतीश कुमार को अधिक तरजीह नहीं देने वाली.

Advertisement
Featured Video Of The Day
Delhi के Mustafabad में ढही इमारत, कई लोगों में मलबे में दबे होने की आशंका | Building Collapse
Topics mentioned in this article