सात माह पहले बिहार के नवादा जिले के वारिसलीगंज से खो गया 13 वर्षीय अमरजीत प्रयागराज महाकुंभ में मिल गया है. 30 मई 2024 को वारिसलीगंज के अम्बेदकर नगर निवासी अमरजीत खो गया था. अमरजीत के परिजन काफी खोजबीन की थी. कलकता, दिल्ली, गया, पटना समेत कई शहरों में तलाश किया था. लेकिन नही पता चल पाया था. उसकी तलाश में तीन चार लाख रुपए खर्च हो गए थे. उसके तलाश में पैसे जुटाने के लिए नाना कृष्णदेव दास ने आधा कट्ठा जमीन भी बेच दिया था. फिर भी नही मिला था.
दरसअल, वारिसलीगंज के अंबेदकर नगर के वार्ड संख्या 10 निवासी सुजीत दास और उनकी पत्नी काजल दास बेटे की तलाश में काफी परेशान थी. काजल दास ने बताया कि बेटे की तलाश में उनकी तबियत खराब हो गई थी. पिता का पैर टूट गया था. घर की आर्थिक हालत खराब हो गई थी.
सब जगह खोजबीन के बाद भी जब नही मिला था तब मान चुके थे कि अब उसका बेटा नही मिल पाएगा. लेकिन एक पड़ोसी ने उनके बेटे की पहचान की. जिसके कारण आज बेटा उनके पास है. काजल ने बताई कि अमरजीत को घर पहुंचने पर उसके पसंद का खाना अंडा रोटी खिलाई.
सात माह बाद प्रयागराज में मिला अमरजीत
काजल दास के मुताबिक, उसके पति सुजीत दास टेंट का काम करते हैं. 30 मई 2024 को वह अपने पति के साथ नवादा चली गई थी. इसी बीच दोपहर में अनिल पासवान नामक व्यक्ति ने उनके बेटा अमरजीत को प्रलोभन देकर बाहर लेकर चला गया था. उसे गया रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया था. इसके बाद वह भटक कर प्रयागराज चल गया था. प्रयागराज के अनाथ आश्रम में उसे संरक्षण मिला था. आश्रम ने उसकी पहचान के लिए पोस्टर चिपकवाया था.
यह पोस्टर देखकर प्रयागराज से एक परिचित ने उनके भैसूर दिलीप दास को फोन किया कि अमरजीत प्रयागराज है. कुंभ में उसका पोस्टर देखा है. वह प्रयागराज के रेलवे स्टेशन के समीप एक अनाथ आश्रम में है. काजल देवी ने कहा कि वीडियो काॅल पर उनके बेटे को दिखाया. उसके बाद उसे लाने के लिए प्रयागराज गई, जहां उसे उसका पुत्र मिल गया. जिस पड़ोसी ने बताया वह कोइरी टोला का रहनेवाला था, जो अमरजीत के चाचा दिलीप को जानता था, जिन्होंने फोन किया था.
वारिसलीगंज थाना प्रभारी रूपेश कुमार सिन्हा ने बताया कि अमरजीत 30 मई 2024 को खो गया था. अमरजीत के पिता सुजीत दास ने इसकी शिकायत थाने में दर्ज कराई थी. पुलिस गुमशुदा अमरजीत की तलाश कर रही थी. पोस्टर भी जारी किया था. अब अमरजीत मिल गया है, जिसे उसके परिजनों को सौंप दिया गया है. कोर्ट में उसका बयान दर्ज करवाया जा रहा है. दरअसल, अमरजीत अपना नाम तो ठीक बता रहा था. लेकिन वह पता वारिसलीगंज के बजाय वैशाली बता रहा था. इसलिए आश्रम वाले नही समझ पा रहे थे. लेकिन पड़ोसी ने पहचान लिया, जिसके कारण अमरजीत को उसके परिवार से मुलाकात हो गई.