बिहार में मुसलमान वोट क्यों सबकी चाहत? तेजस्वी, ओवैसी, पीके की काट में अब बीजेपी का "पीएम"

ओवैसी के तीसरे मोर्चे या पीके के चौथे मोर्चे के वजूद को ना एनडीए का पहला मोर्चा मान रहा है, ना महागठबंधन वाला दूसरा मोर्चा. दोनों आपस में एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोंक रहे हैं. हालांकि, ओवैसी की तरह पीके की भी नजर मुस्लिम वोटों पर है. पीके लगातार मुस्लिम नेताओं को अपने साथ जोड़ रहे हैं. साथ ही उनका मुस्लिम वोटरों पर भी फोकस है.

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(प्रतीकात्मक फोटो)
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  • बिहार में मुस्लिम आबादी 17.7% है, जो राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.
  • बिहार की विधानसभा में 87 सीटें 20% से अधिक मुस्लिम आबादी वाली हैं.
  • महागठबंधन ने पिछले चुनाव में 76% मुस्लिम वोट हासिल किए थे.
  • तेजस्वी यादव ने वक्फ कानून को चुनावी मुद्दा बनाया है.
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बिहार में हर नेता मुसलमानों को सबसे पहली प्राथमिकता मानता है. नीतीश कुमार, राम विलास पासवान और लालू यादव की राजनीति में तो मुसलमान हमेशा से केंद्र में रहे हैं, मगर अब उनकी दूसरी पीढ़ी तेजस्वी और चिराग भी मुसलमानों को साथ लेकर ही अपनी राजनीति आगे बढ़ा रहे हैं. मगर, इस मुसलमान राजनीति में हैदराबाद वाले ओवैसी और पीके (प्रशांत किशोर) सेंधमारी में जुटे हैं. अब हर किसी के दिमाग में ख्याल आता होगा कि आखिर बिहार की राजनीति में मुसलमान इतने अहम क्यों हैं?

  • बिहार में मुस्लिम आबादी 17.7 फीसदी है.
  • बिहार में 20% से ज्यादा मुस्लिम आबादी वाली विधानसभा सीटें  87 हैं.
  • वहीं 15 से 20% मुस्लिम आबादी वाली विधानसभा सीटें 47 हैं.
  • अगर पिछले विधानसभा चुनाव की तरफ देखें तो महागठबंधन को 76 फीसदी मुस्लिम वोट मिले थे.
  • एनडीए को 5 फीसदी, एलजेपी को 2 फीसदी और अन्य को 17 फीसदी वोट मिले थे.
  • ओवैसी, मायावती, उपेंद्र कुशवाहा को 17 फीसदी मुस्लिम वोट मिले थे. 
  • पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव को देखें तो महागठबंधन को मुस्लिम वोट करीब  87% मिला.
  • एनडीए को 12% और अन्य को एक फीसदी.

आंकड़ों को देखकर आपको समझ आ गया होगा कि राजनीतिक दलों के लिए मुसलमान क्यों जरूरी हैं. ये भी समझ आ गया होगा कि तेजस्वी और कांग्रेस वाले महागठबंधन को मुसलमानों ने हाल के चुनावों में झोली भरकर वोट दिए हैं. यही कारण है वक्फ कानून को तेजस्वी यादव ने बिहार चुनाव का अहम मुद्दा बना दिया है. उन्हें लग रहा है कि वो वक्फ के बहाने मुसलमानों के सबसे बड़ी मसीहा बन जाएंगे. मगर वक्फ ही क्यों?

  • बिहार में भी वक़्फ़ बोर्ड के पास 3 हज़ार से ज़्यादा संपत्तियां रजिस्टर्ड हैं.
  • इनमें शिया और सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड दोनों हैं.
  • अकेले पटना में ही वक़्फ़ बोर्ड की 300 से ज़्यादा संपत्तियां हैं. 
  • राज्य में वक्फ़ की कुल संपत्तियों में से ढाई सौ से तीन सौ संपत्तियों पर कोर्ट में मुकदमे चल रहे हैं.
  • शिया वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमैन अफ़ज़ल अब्बास के मुताबिक राज्य में शिया वक़्फ़ बोर्ड के पास 327 संपत्तियां हैं, जिनमें से 117 अकेले पटना में हैं. 
  • इनमें से 137 संपत्तियों से जुड़े केस वक़्फ़ ट्राइब्यूनल के पास हैं और 37 मामले हाइकोर्ट में लंबित हैं.

तेजस्वी को किससे खतरा

तेजस्वी को सबसे बड़ा डर एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी से है. पिछले विधानसभा चुनाव में ओवैसी ने सीमांचल में मुस्लिम बहुल सीटों पर कब्जा जमा लिया था. अब एक बार फिर ओवैसी ने बिहार में ताल ठोंकना शुरू कर दिया है. असदुद्दीन ओवैसी का कहना है कि उनकी पार्टी बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव में किसी भी कीमत पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को सत्ता में वापसी से रोकने के लिए प्रतिबद्ध है. ओवैसी का यह बयान बिहार के राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है. साफ है कि ओवैसी एक बार फिर वैसा ही गठबंधन बनाना चाहते हैं, जैसा पिछली बार बना था, जिसमें बीएसपी से लेकर उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी थी, लेकिन इस बार कुशवाहा एनडीए में हैं. दरअसल, ओवैसी की कोशिश बिहार में महागठबंधन के साथ मिलकर लड़ने की थी, लेकिन उधर से कोई भाव नहीं मिला तो इन्होंने अपना अलग मोर्चा बनाने का ऐलान कर दिया, लेकिन ओवैसी के तीसरे मोर्चे या पीके के चौथे मोर्चे के वजूद को ना एनडीए का पहला मोर्चा मान रहा है, ना महागठबंधन वाला दूसरा मोर्चा. दोनों आपस में एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोंक रहे हैं. हालांकि, ओवैसी की तरह पीके की भी नजर मुस्लिम वोटों पर है. पीके लगातार मुस्लिम नेताओं को अपने साथ जोड़ रहे हैं. साथ ही उनका मुस्लिम वोटरों पर भी फोकस है.

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बीजेपी का 'पीएम गेम'

एनडीए को नीतीश कुमार और चिराग पासवान के कारण मुसलमान वोट मिलते रहे हैं. हालांकि, हालिया चुनावों में मुस्लिमों ने महागठबंधन को एकतरफा वोट करना शुरू कर दिया है. इसके लिए बीजेपी ने 'पीएम गेम'बनाया है. पीएम माने पसमांदा मुसलमान. बीजेपी की कोशिश है पिछड़े मुसलमान उसके सपोर्ट में आ जाएं. बीजेपी ने पसमांदा मुसलमानों को लुभाने के लिए पटना में जून के महीने में पसमांदा महा-सम्मेलन भी किया.बीजेपी मानती है कि वक्फ बिल हो या फिर ट्रिपल तलाक का मामला हो, मुसलमानों में पसमांदा तबका है इन सबसे अछूता रहा है और उसे इसका कोई भी लाभ कभी नहीं मिला है और यही कारण है कि भाजपा लगातार पसमांदा मुसलमानों पर डोरे डाल रही है.बीजेपी के एक तबके का मानना है कि मुसलमान अगर किसी भी सूरत में भाजपा का समर्थन नहीं करते तो भी ट्रिपल तलाक के नाम पर बहुत बड़ी संख्या में मुसलमान महिलाएं भाजपा के समर्थन में खड़ी दिखती हैं. वहीं, वक्फ बोर्ड के नए बिल पर भी पसमांदा मुसलमानों को भाजपा समझाने की कोशिश कर रही है. 

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