- कटिहार-पूर्णिया को जोड़ने वाली सड़क पिछले 78 सालों से नहीं बनी है.
- महनोर गांव की आबादी लगभग छह हजार है और सड़क का डेढ़ किलोमीटर हिस्सा प्रत्येक जिले में आता है.
- ग्रामीणों ने सरकारी लापरवाही के कारण चंदा इकट्ठा कर खुद तीन किलोमीटर सड़क का निर्माण शुरू किया है.
जब कोई एक काम दो अलग-अलग लोगों की जिम्मेदारी हो, तो उसका पूरा होना बहुत ही मुश्किल हो जाता है.एक इस जिम्मेदारी को दूसरे पर डालकर खुद का पल्ला झाड़ लेना चाहता है. बिहार में भी पछले 78 सालों से एक काम बिल्कुल इसी तरह से अटका पड़ा है. काम कौन करेगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है. गांव वाले भी प्रशासन के रवैया से तंग आ चुके हैं. क्यों कि दो इस अनसुनी का खामियाजा तो उनको ही भुगतना पड़ रहा है. मामला सड़क का है, जो पिछले 78 सालों से बनी ही नहीं. दरअसल कटिहार-पूर्णिया को जोड़ने वाली सड़क दोनों अलग-अलग जिलों में आती है, यही वजह है कि इसे आज तक किसी ने बनवाया ही नहीं.
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चंदे से बन रही बिहार की ये सड़क
कटिहार हसनगंज प्रखंड से सटे पूर्णिया जिले का महनोर गांव के लोग अब न जाने कितनी बार नेताओं और सरकारी बाबुओं से गुहार लगा चुके हैं. लेकिन इनकी सुनने वाला कोई है ही नहीं. ग्रामीणों की गुहार का इन पर जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा. जिसके बाद परेशान ग्रामीणों ने सड़क को बनाने की जिम्मेदारी खुद के कंधों पर ले ली. सड़क बनाने के लिए गांव वालों ने मिलकर चंदा इकट्ठा किया. इसी चंदे की मदद से वह करीब तीन किलोमीटर की सड़क का निर्माण करवा रहे हैं.
दो जिलों में आने वाली सड़क 78 सालों से नहीं बनी
कटिहार-पूर्णिया बॉर्डर पर बसे इस गांव की आबादी करीब छह हज़ार है. इसकी भौगोलिक स्थिति की अगर बात करें तो इसका डेढ़ किलोमीटर का रास्ता कटिहार जिले में और डेढ़ किलोमीटर की ही सड़क पूर्णिया जिले में पड़ता है. आजादी के बाद से अब तक इस गांव की मुख्य सड़क और इससे जुड़ा हुआ एक पुल बनाया ही नहीं गया. जिससे गांव वाले परेशान हैं. अपनी परेशानी को दूर करने की जिम्मेदारी ग्रामीणों ने चंदा इकट्ठा कर खुद दल करने की कोशिश की है. फिलहाल सड़क बन रही है.
न सरकारी बाबू सुनते हैं और न ही नेता
ग्रामीणों का कहना है कि पूर्णिया की तरफ जाने के लिए एक नदी पड़ती है. अगर सरकार इस नदी पर पुल बनवा देती को उनको पूर्णिया की दूरी सर्फ 15 किलोमीटर ही रह जाती. लेकिन उनकी सुनने वाला कोई भी नहीं है. जिसकी वजह से उनको कटिहार की तरफ से ज्यादा घूमकर पूर्णिया जाना पड़ता है. ये खबर गांव के विकास को लेकर प्रतिनिधियों की गैर जिम्मेदारी को उजागर करती है.