बिहार चुनावः ओवैसी करेंगे थर्ड फ्रंट की सवारी या पप्पू बनेंगे संकटमोचक, सीमांचल की सियासी कहानी

पप्पू यादव का सीमांचल के मुस्लिमों में पैठ है. उन्होंने लोकसभा चुनाव खुद निर्दलीय के रूप में जीता. इसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका मुस्लिम मतदाताओं की रही. राजनीतिक रूप से पप्पू यादव सबसे अधिक सीमांचल में ही सक्रिय रहते हैं. लेकिन, ओवैसी की तुलना में मुस्लिम वोटर पप्पू यादव को तरजीह दे पाएंगे, यह कह पाना कठिन है.

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AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और पूर्णिया सांसद पप्पू यादव.
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  • AIMIM के प्रदेश अध्यक्ष मो. अख्तरुल ईमान ने बिहार में तीसरे मोर्चे के रूप में चुनाव लड़ने की घोषणा की है.
  • सीमांचल में AIMIM के अकेले लड़ने से त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना बढ़ गई है.
  • सीमांचल के मुस्लिमों में पप्पू यादव की लोकप्रियता है, देखना होगा कि ओवैसी के सामने वो कितना कारगर होते हैं?
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पूर्णिया:

Bihar Assembly Elections 2025: बुधवार को AIMIM के प्रदेश अध्यक्ष मो. अख्तरुल ईमान की घोषणा से सीमांचल का राजनीतिक पारा चढ़ा हुआ है. ओवैसी की पार्टी को बिहार में देखने-समझने वाले नेता अख्तरुल ईमान ने कहा, 'उनकी पार्टी बिहार में थर्ड फ्रंट बनाकर चुनाव लड़ेगी'. ओवैसी की पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की इस घोषणा से सीमांचल का सियासी पारा गरम है. इसलिए कि AIMIM बिहार के अन्य हिस्से की तुलना में सीमांचल में अपना राजनीतिक वजूद रखती है, इस बात से आप इनकार नही कर सकते हैं. हालांकि, इसी बात की संभावना भी थी क्योंकि महागठबन्धन के दरवाजे आरम्भ से ही AIMIM के लिए बंद रहे. दो दिन पहले जिस तरह पार्टी प्रमुख ओवैसी ने तेजस्वी यादव का बिना नाम लिए शैतान तक कह दिया था, उसके बाद गठबंधन की कोई संभावना बच नहीं गई थी.

स्पष्ट है अब सीमांचल में NDA, महागठबन्धन के बाद AIMIM की उपस्थिति से त्रिकोणीय मुकाबला तय है. रही बात नफा और नुकसान की तो यह वक्त ही बताएगा.

सीमांचल के मुसलमानों में पप्पू यादव की खासी लोकप्रियता

लेकिन, इसी बीच सीमांचल के राजनीतिक गलियारे में एक बात की चर्चा तेज हो गई है कि क्या कांग्रेस के सहयोगी पूर्णिया के निर्दलीय सांसद सीमांचल के इलाके में AIMIM से होने वाले संभावित नुकसान को कम करने में सफल हो पाएंगे या असदुद्दीन ओवैसी का तिलिस्म पप्पू यादव पर भारी साबित होगा. यह चर्चा इसलिए जोरों पर है कि माना जाता है कि सीमांचल के इलाके में मुसलमानों के बीच पप्पू यादव की खासी लोकप्रियता है.

टिकट बंटवारे में तवज्जो नहीं मिली तो चुन सकते हैं अलग राह

पूर्णिया से लोकसभा में उनकी जीत की एक प्रमुख वजह यह भी रही थी. लेकिन, विकल्प की बात तब होगी जब पप्पू यादव कांग्रेस और महागठबन्धन के साथ मजबूती से खड़े रहेंगे. ऐसा इसलिए कि, राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर टिकट बंटवारे में उनकी राजनीतिक महत्वकांक्षा पूरी नही हुई तो वे अपनी अलग राह भी चुन सकते हैं.

पप्पू यादव कांग्रेस से करते रहे हैं इजहार-ए-इश्क

सांसद पप्पू यादव विधिवत नहीं खुद को दिल से कांग्रेसी मानते हैं. दिल दी मामला इसलिए भी बनता है कि धर्मपत्नी रंजीत रंजन कांग्रेस की राज्य सभा सदस्य है. लेकिन, बीते 03 माह में कई ऐसे मौके आये जब पप्पू यादव जिद्दी आशिक की तरह लगातार कांग्रेस से अपने इश्क का इजहार करते रहे लेकिन उसे अनसुनी कर दी गई.

तेजस्वी के कारण पप्पू को किनारे रखती रही कांग्रेस!

इस वजह से वे मीडिया की सुर्खियां भी बने. कभी जीप पर चढ़ने में विफल रहे तो कभी सफल भी रहे. कुछ लोग मानते हैं कि पप्पू यादव का प्रणय-निवेदन कांग्रेस तेजश्वी यादव की वजह से ठुकराती रही. अंततः उनकी जिद्द रंग लाई या फिर कांग्रेस की राजनीतिक मजबूरी रही, 26 सितंबर की मोतिहारी की प्रियंका गांधी की सभा मे उन्हें मंच साझा करने का अवसर मिल ही गया.

क्या कांग्रेस के साथ राजनीतिक इश्क निभा पाएंगे पप्पू यादव

राजनीतिक गलियारे में इस बात की भी खूब चर्चा है कि पप्पू यादव का कांग्रेस के साथ राजनीतिक-इश्क परवान चढ़ पाएगा या फिर इतिहास खुद को दोहराएगा. सच तो यही है कि निजी जीवन मे प्रेम-विवाह कर गृहस्थ जीवन बिताने वाले पप्पू यादव का किसी राजनीतिक दल से स्थायी इश्क नहीं हुआ. उन्होंने जब भी किसी राजनीतिक दल से दिल लगाया, देर-सवेर अलगाव की नौबत आ ही गई. समाजवादी पार्टी और राजद इसका उदाहरण है.

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पप्पू यादव का विद्रोही मिजाज और राजनीतिक महत्वकांक्षा

जानकर इसकी वजह उनका विद्रोही मिजाज और राजनीतिक महत्वाकांक्षा को मानते हैं. निश्चित रूप से इस चुनाव में भी उनकी राजनीतिक महत्वकांक्षा भी है और कांग्रेस के रास्ते पूरी नहीं होने पर वे कोई अलग फैसला ले लें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए. दरअसल, उन्हें इस बात का हमेशा मलाल रहता है कि वे मुख्यमंत्री नहीं बन पाए.

पप्पू के जरिए क्या कांग्रेस कर रही महागठबंधन में दवाब की राजनीति

पप्पू यादव हमेशा कांग्रेस की तरफदारी करते नजर आते रहे हैं. सीटों की बटवारे की बात हो या मुख्यमंत्री का चेहरा, वे कांग्रेस की ही वकालत करते हैं. मसलन, विधान सभा सीटों का बंटवारा लोकसभा चुनाव परिणाम के स्ट्राइक रेट पर आधारित हो और मुख्यमंत्री चेहरे का फैसला चुनाव के बाद होगा. इतना ही नहीं कई ऐसी बातें जो राजद को नागवार गुजरती रही है, पप्पू यादव बड़ी आसानी से बोल जाते हैं जो कांग्रेस के भले ही आधिकारिक विचार नहीं होते हैं.

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जब पप्पू यादव की बातों का कांग्रेस कोई खंडन भी नहीं करती है तो ऐसे में यह सवाल उठना भी लाजिमी है कि क्या कांग्रेस पप्पू यादव का इस्तेमाल महागठबन्धन में दबाब की राजनीति के लिए करती है! इन कयासों में इसलिए भी दम है कि पप्पू यादव तेजस्वी को एक तरफ जननायक बताने से भी गुरेज नहीं करते है तो दूसरी तरफ तेजस्वी को निशाना भी बनाते रहे हैं. इससे उलट राहुल और प्रियंका की वे हमेशा तरफदारी करते रहे हैं.

सीमांचल में किस तरह साबित हो सकते हैं ओवैसी का विकल्प

निश्चित रूपेण पप्पू यादव का सीमांचल के मुस्लिमों के बीच पैठ है. उन्होंने लोकसभा चुनाव खुद निर्दलीय के रूप में जीता तो इसमे सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका मुस्लिम मतदाताओं की रही. राजनीतिक रूप से पप्पू यादव सबसे अधिक सीमांचल में ही सक्रिय रहते हैं. लेकिन, ओवैसी की तुलना में मुस्लिम वोटर पप्पू यादव को तरजीह दे पाएंगे, यह कह पाना कठिन है.
 

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क्योंकि, मुस्लिम वोटरों के एक तबके में जिसे 'घुसपैठिया' कहकर चिन्हित किया जाता रहा है, ओवैसी निर्विवाद रूप से लोकप्रिय हैं. वजह यह है कि ओवैसी की भाषा आक्रामक है और वे जो बातें कहते हैं वह उस वर्ग को खूब रास आता है.


हालांकि, ओवैसी की राह भी आसान नहीं है. वक्फ बिल, एस आईआर और घुसपैठ का मुद्दा के बाद परिस्थितियां बदली हुई भी है और ऐसे में यह तबका एनडीए को हराने वाली पार्टी को ही वोट करना पसंद करे तो आश्चर्य नही. AIMIM की घोषणा के बाद वोटों के ध्रुवीकरण की स्थिति में सीमांचल में NDA अगर बाजीगर साबित हो जाए तो भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

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