बिहार चुनाव: सिंघेश्‍वर में चार बार जीती जेडीयू, 2020 में आरजेडी ने मारी बाजी, जानें क्‍या है प्रमुख मुद्दे

सिंघेश्‍वर में 2005 से 2015 तक लगातार चार बार जदयू ने यहां जीत दर्ज की, लेकिन 2020 के चुनाव में यह सिलसिला टूट गया. उस वर्ष राजद के चंद्रहास चौपाल ने जदयू के नरेंद्र नारायण यादव को 5,573 मतों से हराकर नया इतिहास रच दिया.

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  • बिहार की सिंघेश्वर सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित और राजनीतिक रूप से संवेदनशील है.
  • 2020 के चुनाव में राजद के चंद्रहास चौपाल ने जदयू के उम्मीदवार को हराकर त्रिकोणीय मुकाबले में जीत हासिल की थी.
  • 2024 के चुनाव में बाढ़ नियंत्रण, कृषि संकट, दलित अधिकार और धार्मिक पर्यटन जैसे मुद्दे प्रमुख रहेंगे.
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पटना :

बिहार के मधेपुरा जिले की सिंघेश्वर विधानसभा सीट चुनावी समर में एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है. यह सीट अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित है और सामाजिक-धार्मिक महत्व के साथ-साथ राजनीतिक रूप से भी बेहद संवेदनशील मानी जाती है. 2008 में परिसीमन के बाद यह सीट मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र से हटकर सुपौल लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा बन गई. सिंहेश्वर विधानसभा क्षेत्र में तीन प्रमुख प्रखंड हैं. 

सिंहेश्वर को धार्मिक रूप से एक अत्यंत पवित्र स्थल माना जाता है. यहां का प्रसिद्ध सिंघेश्‍वरनाथ महादेव मंदिर, जिसे 'कामना लिंग' के नाम से जाना जाता है, लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है. मान्यता है कि यहीं पर ऋषि श्रृंगी ने राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ किया था, जिसके फलस्वरूप श्रीराम और उनके भाइयों का जन्म हुआ. इस क्षेत्र का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है और यह न केवल शिव उपासना का केंद्र है, बल्कि आध्यात्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है.

मंदिर के परिसर में मां सिंघेश्‍वरी के रूप में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की उपस्थिति, त्रिदेवों की स्थापना और भगवान बुद्ध की मूर्ति इस धार्मिक स्थल की विविधता को दर्शाते हैं.

भौगोलिक रूप से यह क्षेत्र कोसी नदी की धारा में स्थित है और बाढ़ के साथ जीने की मजबूरी यहां की जीवनशैली का हिस्सा बन चुकी है. कृषि ही यहां की मुख्य आजीविका है, जिसमें धान, मक्का, गेहूं और दालें प्रमुख हैं. औद्योगिक विकास सीमित है, जिससे सीमांत किसान और भूमिहीन मजदूर अक्सर आजीविका की तलाश में पलायन करते हैं.

राजनीतिक दृष्टि से सिंघेश्‍वर विधानसभा सीट की भूमिका अहम रही है. 1977 में पहली बार चुनाव हुए और अब तक 12 बार चुनाव संपन्न हो चुके हैं, जिनमें 1981 का उपचुनाव भी शामिल है. 2005 से 2015 तक लगातार चार बार जदयू ने यहां जीत दर्ज की, लेकिन 2020 के चुनाव में यह सिलसिला टूट गया. उस वर्ष राजद के चंद्रहास चौपाल ने जदयू के नरेंद्र नारायण यादव को 5,573 मतों से हराकर नया इतिहास रच दिया. यह उन 25 सीटों में से एक थी, जहां चिराग पासवान की लोजपा ने एनडीए से अलग होकर केवल जदयू को नुकसान पहुंचाने की रणनीति अपनाई थी. दिलचस्प रूप से लोजपा को मिले वोटों की संख्या राजद की जीत के अंतर से 34 ज्यादा थी, जिससे यह स्पष्ट होता है कि त्रिकोणीय मुकाबला यहां निर्णायक साबित हुआ.

राजनीतिक समीकरणों की बात करें तो सिंघेश्‍वर में मुकाबला मुख्य रूप से राजद और जदयू के बीच बना हुआ है. चंद्रहास चौपाल 2020 की जीत के बाद फिर से मैदान में उतरने को तैयार हैं, वहीं जदयू इस सीट को पुनः जीतने के लिए रणनीति बना रही है. भाजपा की भूमिका यहां सहयोगी दल के रूप में ही रही है, क्योंकि यह सीट उसके कोर वोट बैंक में नहीं आती. लोजपा (रामविलास) की भूमिका भी अहम रहेगी, क्योंकि वह निर्णायक वोटों में सेंध लगा सकती है.

चुनाव आयोग के अनुसार, 2024 में सिंघेश्‍वर विधानसभा की कुल अनुमानित जनसंख्या 5,41,506 है, जिसमें पुरुषों की संख्या 2,78,118 और महिलाओं की संख्या 2,63,388 है. वहीं, मतदाताओं की कुल संख्या 3,29,079 है, जिसमें 1,70,755 पुरुष, 1,58,315 महिलाएं और 9 थर्ड जेंडर हैं.

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2025 के चुनाव में सिंघेश्‍वर में मुद्दे वही रहेंगे जो वर्षों से यहां की जमीनी हकीकत रहे हैं. बाढ़ नियंत्रण, पलायन रोकना, कृषि संकट, दलित समाज के अधिकार और धार्मिक पर्यटन का समुचित विकास. हालांकि, विकास के नाम पर मंदिर क्षेत्र में आंशिक सुधार हुए हैं, परंतु बड़े पैमाने पर रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में अब भी व्यापक सुधार की जरूरत है.

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