135 पर दांव, 1 में जमा था पांव... तो क्‍या इसलिए नीतीश पर बदले-बदले हैं चिराग पासवान के सुर?

जानकार बताते हैं कि चिराग का अस्तित्‍व एनडीए में रहते हुए ही बचा रहेगा. बिहार विधानसभा चुनाव में अगर वो एनडीए से अलग हुए तो पार्टी का हश्र 2020 की तरह हो सकता है

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  • चिराग पासवान की लोकसभा चुनावों में सफलता दर 100% है लेकिन बिहार विधानसभा में उनकी पार्टी का स्‍कोर जीरो है.
  • 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में लोजपा ने अकेले चुनाव लड़ा और पार्टी केवल एक सीट पर जीत हासिल कर पाई थी.
  • चिराग पासवान ने हाल ही में नीतीश कुमार की प्रशंसा करते हुए उन्हें अगले 5 वर्षों के लिए मुख्यमंत्री बताया है.
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पटना:

बिहार की राजनीति में चिराग पासवान (Chirag Paswan) करना तो बहुत कुछ चाहते हैं, लेकिन कर नहीं पाते! नरेंद्र मोदी के 'आज्ञाकारी' चिराग एनडीए में शामिल रहते हुए लोकसभा चुनावों में तो हीरो साबित हो गए, लेकिन बिहार के विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी लोजपा (रामविलास) खास कमाल नहीं कर पाई. 2014 लोकसभा चुनाव में चिराग की पार्टी को 6 सीटों पर जीत मिली, 2019 में भी 6 की 6 सीटें जीतीं और फिर 2024 में NDA में 5 सीट खाते में आई और सभी पांचों सीटों पर जीत मिली. लोकसभा चुनावों में सक्‍सेस रेट 100%, लेकिन विधानसभा चुनाव में? बिहार में लोजपा (रामविलास) के एक भी विधायक नहीं हैं. एकमात्र विधायक थे- राज कुमार सिंह, जो अप्रैल 2021 में नीतीश कुमार की JDU में शामिल हो गए. 

यानी बिहार विधानसभा में चिराग का स्‍कोर है- जीरो. तो क्‍या बिहार में नीतीश कुमार के प्रति चिराग के बदले सुर के पीछे यही वजह है? क्‍या चिराग, पार्टी का फरवरी 2005 वाला प्रदर्शन दोहरा पाएंगे?

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नीतीश की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे चिराग!

नीतीश कुमार को लेकर बगावती सुर दिखाने वाले चिराग पासवान अब उनकी तारीफ में कसीदे पढ़ते दिख रहे हैं. नीतीश के पक्ष में एक बार फिर चिराग का बयान सामने आया है. लोजपा (रामविलास) अध्‍यक्ष चिराग ने कहा, 'मुझे विश्‍वास है कि नीतीश कुमार, अगले 5 साल तक सीएम पद पर बने रहने के लिए बिल्‍कुल स्‍वस्‍थ हैं.' इतना ही नहीं उन्‍होंने आगे कहा कि बिहार को अनुभ‍वी नेतृत्‍व की जरूरत है और वो (नीतीश) वही हैं, जिन्‍होंने जंगलराज से बिहार को निकाल कर इस मुकाम तक पहुंचाया.' इससे पहले चिराग ने कहा था कि नीतीश कुमार ही चुनाव के बाद बिहार के मुख्‍यमंत्री होंगे. 

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...तो फिर इसमें आश्‍चर्य कैसा!

हालांकि इसमें कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए थी क‍ि एनडीए में शामलि एक दल का मुखिया, दूसरे दल के मुखिया की तारीफ कर रहा है. लेकिन ये वही चिराग हैं, जो कुछ दिन पहले तक राज्‍य में बढ़ते क्राइम को लेकर अपनी ही सरकार को घेरते दिखे थे. उन्‍होंने नीतीश कुमार की अगुवाई वाली बिहार सरकार की आलोचना में कोई कसर नहीं छोड़ी थी और राज्‍य में बढ़ते अपराध के लिए एक तरह से उन्‍हें ही जिम्‍मेवार ठहरा दिया था. उन्‍होंने तो यहां तक कह दिया था कि उन्‍हें ऐसी सरकार का समर्थन करते शर्म आती है, जहां अपराध लगातार बढ़ते जा रहे हैं.' लेकिन सियासी समीकरणों के गुणा-गणित के बाद चिराग का 'हृदय-परिवर्तन' दिखा. 

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चिराग का कहना है कि विपक्ष उनकी बातों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करता है. उन्‍होंने कहा, 'हम साथ-साथ हैं और चुनाव में 225 से ज्‍यादा सीटें जीतकर सरकार बनाएंगे.'

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2020 में अकेले थी लोजपा, हुआ था बुरा हश्र!

विधानसभा चुनाव 2020 में भी चिराग पासवान नीतीश कुमार पर हमलावर थे. 2015 में महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ी जदयू एक बार फिर एनडीए में लौट चुकी थी और 2020 के लिए एनडीए में सीट बंटवारे का फॉर्मूला चिराग को पसंद नहीं आया था. और इसलिए उन्‍होंने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला लिया. ये फैसला सिलेक्टिव था. यानी बीजेपी से उन्‍हें कोई दिक्‍कत नहीं थी, इसलिए केवल उन्‍हीं सीटों पर कैंडिडेट उतारे, जहां एनडीए से जदयू कैंडिडेट मैदान में थे. जाहिर तौर पर चिराग की लोजपा ने वोट काटा, लेकिन उन्‍हें कोई फायदा नहीं हुआ. 

2020 चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) ने स्वतंत्र रूप से बिहार विधानसभा की 135 सीटों पर चुनाव लड़ा, उसे महज 5.66 फीसदी वोट मिले और 110 सीटों पर पार्टी की जमानत जब्‍त हो गई. पार्टी को सिर्फ एक सीट पर जीत मिली. और कुछ समय बाद जून 2021 में लोजपा दो हिस्सों में बंट गई. पार्टी के एक गुट(रामविलास) के नेता चिराग पासवान बने, जबकि दूसरे गुट के नेता उनके चाचा पशुपति पारस बने.

नीतीश के ऐलान में चिराग की प्रा‍थमिकता 

इस बार नीतीश कुमार ने तो शिक्षक बहाली में डोमिसाइल नीति (बिहार का स्‍थाई निवासी होना जरूरी) लागू कर चिराग पासवान की पिच पर बैटिंग करते हुए छक्‍का मार दिया है. चिराग अक्‍सर 'बिहार फर्स्‍ट, बिहारी फर्स्‍ट' की बात करते रहे हैं. और अब नीतीश कुमार ने चुनावी साल में बड़ी घोषणा कर डाली कि शिक्षक बहाली में बिहार के स्‍थाई युवा ही योग्‍य होंगे. 

जानकार बताते हैं कि चिराग का अस्तित्‍व एनडीए में रहते हुए ही बचा रहेगा. बिहार विधानसभा चुनाव में अगर वो एनडीए से अलग हुए तो पार्टी का हश्र 2020 की तरह हो सकता है. जदयू से अलग होने का मतलब एनडीए से अलग होना होगा और बीजेपी से भी. ऐसा वे चाहेंगे नहीं. इसलिए जानकार मानते हैं कि  नीतीश के साथ बने रहना ही चिराग के लिए बेहतर हो सकता है. 

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