बिहार चुनाव: लालगंज, पटना साहिब, खगड़िया, तारापुर और गोपालगंज में उम्मीदवारों ने नामांकन वापस लिया  

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नजदीक आने के साथ ही ऐसे नामांकन वापसी के फैसले राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकते हैं. साथ ही ये मतदाताओं और राजनीतिक दलों दोनों के लिए निर्णायक साबित होंगे. 

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  • बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कई प्रमुख उम्मीदवारों ने लालगंज, पटना साहिब जैसे क्षेत्रों में नामांकन वापस लिया.
  • कांग्रेस के आदित्य राजा ने लालगंज से नामांकन वापस लिया, जिससे राजद ने शिवानी शुक्ला को उम्मीदवार बनाया है.
  • पटना साहिब से भाजपा के बागी शिशिर कुमार ने नामांकन वापसी की, जिससे पार्टी को क्षेत्रीय लाभ मिलने की संभावना.
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पटना:

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नजदीक आते ही उम्मीदवारों की नामांकन वापसी ने राज्य की राजनीतिक तस्वीर में नए मोड़ ला दिए हैं. लालगंज, पटना साहिब, खगड़िया, तारापुर और गोपालगंज जैसे अहम क्षेत्रों में कई प्रमुख उम्मीदवारों ने अपने नामांकन वापस लिए हैं. इससे स्थानीय और राज्य स्तर पर पार्टियों की रणनीतियों में बदलाव देखने को मिल रहा है. लालगंज विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के आदित्य राजा ने अपना नामांकन वापस लिया. उनके हटने के बाद राजद ने शिवानी शुक्ला को उम्मीदवार बनाया है. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इससे इस क्षेत्र में राजद को स्थिति मजबूत करने का अवसर मिलेगा और कांग्रेस के लिए चुनौती बढ़ सकती है. 

होगा बीजेपी को फायदा? 

पटना साहिब से भाजपा के बागी शिशिर कुमार ने भी नामांकन वापस लिया. शिशिर कुमार ने हाल ही में पार्टी से अलग होकर अपनी अलग राजनीतिक राह चुनी थी. उनके नामांकन वापसी से भाजपा को क्षेत्रीय स्तर पर फायदा मिलने की उम्मीद जताई जा रही है. खगड़िया से पूनम देवी यादव ने अपना नामांकन वापस लिया. वह पशुपति पारस की पार्टी से उम्मीदवार थीं. उनके चुनाव लड़ने से कांग्रेस के उम्मीदवार चंदन यादव को नुकसान हो सकता था. नामांकन वापसी के बाद चंदन यादव को इस क्षेत्र में अपने चुनाव अभियान को और अधिक मजबूती से चलाने का अवसर मिला है. राजनीतिक विश्लेषक इसे कांग्रेस के लिए राहत की खबर मान रहे हैं, क्योंकि इससे वोट बंटवारे का खतरा कम हुआ है. 

महागठबंधन को लगा झटका 

विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के तारापुर विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार सकलदेव बिंद ने अपना नामांकन वापस ले लिया. इसके बाद, उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सदस्यता ग्रहण की. यह कदम महागठबंधन के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है, क्योंकि इस सीट पर पहले ही सीट बंटवारे को लेकर असमंजस की स्थिति थी. सकलदेव बिंद का यह निर्णय भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक लाभ साबित हो सकता है. गोपालगंज विधानसभा क्षेत्र में जनसुराज डॉ. शशि शेखर सिन्हा ने भी नामांकन वापस लेने का फैसला किया. उनके हटने से भाजपा को क्षेत्रीय स्तर पर स्पष्ट बढ़त मिलने की संभावना है. इससे पार्टी को अपने चुनावी अभियान पर ध्यान केंद्रित करने और रणनीतिक रूप से मजबूत होने का अवसर मिला है.

क्‍या सोचते हैं विशेषज्ञ  

विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के बदलाव केवल उम्मीदवारों तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि राज्य की राजनीतिक रणनीति और गठबंधनों पर भी असर डालते हैं. पार्टियों की यह चाल चुनावी समीकरणों में संतुलन और असंतुलन दोनों पैदा कर सकती है. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि लालगंज, पटना साहिब, खगड़िया, तारापुर और गोपालगंज जैसी सीटों पर उम्मीदवारों की वापसी चुनावी लड़ाई को और रोचक बना रही है. कांग्रेस, राजद और भाजपा जैसी प्रमुख पार्टियों ने अब अपनी रणनीतियों को नए सिरे से तैयार करना शुरू कर दिया है.

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नजदीक आने के साथ ही ऐसे नामांकन वापसी के फैसले राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकते हैं. आगामी हफ्तों में और भी बदलाव देखने को मिल सकते हैं, जो मतदाताओं और राजनीतिक दलों दोनों के लिए निर्णायक साबित होंगे. 

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