जेडीयू से निकाले गए 11 बागी बिहार चुनाव में किस-किस का बिगाड़ेंगे खेल, जानें हर सीट का समीकरण

नीतीश कुमार ने निष्कासन से साफ संदेश दिया है कि वो संगठन पर पकड़ ढीली नहीं होने देंगे. उन्होंने यह भी संदेश दिया है कि जेडीयू में अनुशासन सर्वोपरि है, टिकट न मिलने पर बगावत की इजाज़त नहीं है और NDA के अंदर शक्ति संतुलन बनाए रखने का इरादा है.

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जेडीयू के 11 बाग़ियों पर गिरी गाज, जानें सीटों पर क्या पड़ेगा असर?
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  • बिहार चुनाव के पहले चरण में जेडीयू ने 11 नेताओं को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में निष्कासित किया है
  • असंतोष के मुख्य कारणों में टिकट बंटवारे, स्थानीय गुटबाजी और NDA में सीट शेयरिंग के समीकरण शामिल हैं
  • निष्कासित बागी नेताओं ने कई सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़कर मुकाबला त्रिकोणीय कर दिया है
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पटना:

बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के प्रचार के बीच जेडीयू में बग़ावत खुलकर सामने आ गई. लंबे समय से पार्टी के अंदर असंतोष अब विस्फोट की स्थिति में पहुंच गया है. नतीजा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कड़ा कदम उठाते हुए पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल 11 नेताओं को तत्काल प्रभाव से जेडीयू से निष्कासित कर दिया. इन सभी नेताओं पर आरोप था कि वे पार्टी की सदस्यता रहते हुए निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे थे और आधिकारिक उम्मीदवारों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे. जेडीयू का दावा है कि इन नेताओं को बार-बार समझाया गया, लेकिन इन सभी ने पार्टी लाइन से अलग जाकर संगठन की छवि, नैतिकता और अनुशासन को चुनौती दी. नीतीश कुमार की राजनीति में अनुशासन और संगठन की मजबूती हमेशा प्राथमिकता रही है. ऐसे में चुनाव से ठीक पहले बग़ावत पार्टी के लिए बड़ा झटका थी, इसलिए नुकसान को रोकने के लिए त्वरित कार्रवाई की गई.

जेडीयू में बगावत के तीन बड़े कारण


1- टिकट बंटवारे को लेकर असंतोष यानी कई पुराने नेताओं को टिकट नहीं मिला, जिससे नाराज़गी उभर कर सामने आई. 
2- स्थानीय स्तर पर गुटबाज़ी और जनाधार का भ्रम...  कई नेताओं को भरोसा था कि उनके क्षेत्र में उनकी पकड़ मजबूत है और वे बिना पार्टी के भी जीत सकते हैं.
3- एनडीए के भीतर सीट शेयरिंग से उपजे समीकरण यानी भाजपा और जेडीयू के बीच सीटों की अदला-बदली ने भी बग़ावत को हवा दी.


 

बागी नेताओं ने कई सीटों पर त्रिकोणीय किया मुकाबला

जदयू से निष्कासित नेताओं की सूची में चार पूर्व विधायक, एक पूर्व मंत्री और पार्टी के कई प्रभावशाली चेहरे शामिल हैं. जैसे शैलेश कुमार (पूर्व मंत्री), संजय प्रसाद (पूर्व विधान पार्षद), श्याम बहादुर सिंह (पूर्व विधायक), रणविजय सिंह (पूर्व विधान पार्षद), सुदर्शन कुमार (पूर्व विधायक), बेगूसराय से अमर कुमार सिंह, वैशाली से आश्मा परवीन, नबीनगर से लव कुमार, कटिहार से आशा सुमन, मोतिहारी से दिव्यांशु भारद्वाज और सिवान से विवेक शुक्ला शामिल हैं. इनमें से कई ऐसे हैं, जिनका अपने क्षेत्र में अच्छा व्यक्तिगत जनाधार है. यही वजह है कि इनके निर्दलीय मैदान में उतरने से मुकाबला कई सीटों पर त्रिकोणीय हो चुका है.
 

सीटों पर क्या पड़ेगा असर?

नेताओं को पार्टी से निष्‍कासित करने के इस निर्णय से जेडीयू के आधिकारिक उम्मीदवार का वोट कटेगा. अधिकतर बागी नेता अपनी जातीय व स्थानीय पकड़ के कारण जेडीयू के आधिकारिक उम्मीदवार का वोट बैंक काटेंगे. इससे लाभ विरोधी दलों, विशेषकर आरजेडी और कांग्रेस को मिल सकता है. जिन सीटों पर पहले NDA को जीत आसान लग रही थी, वहां अब मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है, जिससे समीकरण बदल सकते हैं. 

  • बरबीघा की बात करें, तो पूर्व विधायक सुदर्शन कुमार का स्थानीय स्तर पर मजबूत जनाधार माना जाता है. वह यादव-कुर्मी और अल्पसंख्यक मतदाताओं पर असर रखते हैं. निर्दलीय लड़ने से जेडीयू का कोर वोट खिसक सकता है, जिससे RJD को फायदा मिलने की संभावना बढ़ गई है.
  • बड़हरिया, सिवान से श्याम बहादुर सिंह, पूर्व विधायक बहुत ही देसी छवि वाले नेता माने जाते हैं. श्याम बहादुर का यहां हथुआ-सिवान बेल्ट में व्यक्तिगत प्रभाव है. वे अपनी साफ-सुथरी छवि और जनसंपर्क के लिए जाने जाते हैं. उनके निर्दलीय लड़ने से जेडीयू के लिए सीट बचाना मुश्किल हो सकता है. यहां मुकाबला अब बागी बनाम RJD बनाम जेडीयू हो गया है.
  • बरहरा, भोजपुर के रणविजय सिंह जो पूर्व MLC है, इनकी पकड़ सवर्ण व युवा वोटरों पर है. निर्दलीय उतरने से NDA का वोट बिखरेगा, जिससे राजद–वाम गठबंधन मजबूत स्थिति में आ सकता है.
  • कदवा, कटिहार की आशा सुमन की महिला और अति पिछड़ा वर्ग मतदाताओं में उनकी अच्छी पहचान है. यहां जेडीयू बनाम BJP की आंतरिक लड़ाई भी चर्चा में है. बागी के मैदान में रहने से मुकाबला और पेचीदा होगा.
  • वैशाली की डॉ. आसमा परवीन अल्पसंख्यक और महिला मतदाताओं में अच्छी खासी पकड़ के लिए जानी जाति है. इनके बागी उम्मीदवार बनने से जेडीयू की मुस्लिम-महिला वोट रणनीति को झटका लगेगा, RJD इसका लाभ उठा सकती है.
  • मोतिहारी से युवा चेहरे दिव्यांशु भारद्वाज काफ़ी दिनों से ज़मीन पे मेहनत कर रहे थे, इस उम्मीद में कि उनका टिकट पक्का है. अब वो बाग़ी हैं. मोतिहारी में बीजेपी-जेडीयू का संयुक्त वोट बैंक होता था, लेकिन उनके निर्दलीय उतरने से वोटों का विभाजन होगा. इससे सीट पर कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा.



नीतीश कुमार ने निष्कासन से साफ संदेश दिया है कि वो संगठन पर पकड़ ढीली नहीं होने देंगे. उन्होंने यह भी संदेश दिया है कि जेडीयू में अनुशासन सर्वोपरि है,  टिकट न मिलने पर बगावत की इजाज़त नहीं है और  NDA के अंदर शक्ति संतुलन बनाए रखने का इरादा है. लोग यह भी मानते है कि जेडीयू आने वाले समय में नए चेहरों और युवा नेताओं को आगे बढ़ाकर पार्टी का पुनर्गठन करना चाहती है, इसलिए पुराने व नाराज़ चेहरों को हटाया जा रहा है. निष्कासित नेताओं के लिए आगे के रास्ते आसान नहीं है। वास्तविकता यह है कि बिना चुनाव चिन्ह और बिना बड़े संगठन के चुनाव जीतना आसान नहीं होता, चाहे व्यक्तिगत जनाधार कितना भी क्यों न हो?

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