जानकी मंदिर है सीतामढ़ी विधानसभा की पहचान, बेहद दिलचस्प रहा है यहां का सियासी समीकरण, पढ़ें हर बात विस्तार से 

यह सीट वर्षों से चर्चा में रही, लेकिन इस विधानसभा में विकास कोसों दूर है. स्थानीय लोगों का मानना है कि जितना विकास इस विधानसभा में होना चाहिए, उतना नहीं हो पाया. 5 लाख से ज्यादा आबादी वाले इस विधानसभा में जाम और जलभराव की समस्या लंबे समय से चर्चा का विषय रही है.

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सीतामढ़ी विधानसभा सीट पर हमेशा से दिलचस्प रहा है मुकाबला
पटना:

बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में सीतामढ़ी सीट सियासी और धार्मिक चर्चाओं का केंद्र बन चुकी है. नेपाल की सीमा से सटी यह सीट, जहां माता सीता की जन्मस्थली पुनौरा धाम स्थित है, न केवल अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत के लिए जानी जाती है, बल्कि इस बार माता जानकी के भव्य मंदिर के शिलान्यास ने इसे बिहार की अन्य विधानसभा सीटों की तुलना में कहीं ज्यादा खास बना दिया है. इस बार के चुनाव में सीतामढ़ी सीट 70.70 फीसदी मतदान हुआ है. वहीं अगर बात इस सीट पर मुकाबले की करें तो यहां इस बार आरजेडी और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला है. आरजेडी ने इस सीट से सुनील कुमार को मैदान में उतारा है. वहीं, बीजेपी ने सुनील कुमार पिंटू पर अपना दांव खेला है. 

अयोध्या की सीट से होती है तुलना

यूपी की अयोध्या सीट से इसे जोड़कर देखा जा रहा है, जहां भगवान राम के मंदिर ने राष्ट्रीय स्तर पर हिंदुत्व और विकास के एजेंडे को नई धार दी. सीतामढ़ी में माता सीता के मंदिर का शिलान्यास, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में, एक सियासी मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है.दूसरी ओर, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और तेजस्वी यादव की ‘वोटर अधिकार यात्रा' और माता जानकी मंदिर में दर्शन ने इस सीट पर सॉफ्ट हिंदुत्व की जंग को और तेज कर दिया है.

नेपाल सीमा से निकटता, मिथिला संस्कृति और वैश्य-यादव-मुस्लिम मतदाताओं के जातिगत समीकरण इस सीट को और रोचक बनाते हैं.सीतामढ़ी और नेपाल के बीच सांस्कृतिक समानताएं, खासकर मिथिला संस्कृति, दोनों क्षेत्रों को जोड़ती हैं. मिथिला की परंपराएं, जैसे मधुबनी पेंटिंग और मैथिली भाषा, दोनों तरफ प्रचलित हैं. छठ पूजा जैसे लोकपर्व में सीतामढ़ी और नेपाल के लोग एक साथ हिस्सा लेते हैं.

जाम और जलभराव है अहम मुद्दों में से एक

यह सीट वर्षों से चर्चा में रही, लेकिन इस विधानसभा में विकास कोसों दूर है. स्थानीय लोगों का मानना है कि जितना विकास इस विधानसभा में होना चाहिए, उतना नहीं हो पाया. 5 लाख से ज्यादा आबादी वाले इस विधानसभा में जाम और जलभराव की समस्या लंबे समय से चर्चा का विषय रही है. सोशल मीडिया पर स्थानीय लोग अक्सर विधायक की अनुपस्थिति और इन समस्याओं के समाधान न होने की शिकायत करते हैं. इसके अलावा इस विधानसभा में रोजगार एक बड़ा मुद्दा है, इसके साथ ही अपराध बेलगाम है. हाल की कुछ घटनाओं ने सीतामढ़ी को चर्चा में ला दिया था. इस विधानसभा क्षेत्र में वैश्य, ब्राह्मण, यादव और मुस्लिम मतदाताओं का एक विविध मिश्रण है, जिसके कारण यहां की राजनीति में जातिगत समीकरण और सामाजिक गतिशीलता हमेशा चर्चा में रहती है.

BJP और RJD के बीच रहती है लड़ाई

सीतामढ़ी विधानसभा में कुल जनसंख्या 5,08,713 है. चुनाव आयोग के डाटा (जनवरी 2024 ) अनुसार, कुल वोटर 3,10,237, पुरुष मतदाता 1,64,057, महिलाएं मतदाता 1,46,161 और थर्ड जेंडर 19 हैं. इस सीट पर राजद और भाजपा के बीच खुले तौर पर चुनौती देखने को मिलती रही है. 2020 के विधानसभा चुनाव में जब नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा तो यहां से भाजपा की टिकट पर मिथिलेश कुमार ने जीत हासिल की. राजद को यहां हार का सामना करना पड़ा. हालांकि, जब नीतीश कुमार ने 2015 में भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ा तो यहां पर राजद के उम्मीदवार को जीत हासिल हुई.

भाजपा जहां इस सीट पर फिर एक बार जीत हासिल करना चाहेगी, वहीं राजद पिछली हार का बदला लेने के इरादे से उतरेगी.स्थानीय लोगों के अनुसार, इस सीट से वर्तमान भाजपा विधायक को लेकर नाराजगी है. लोगों का मानना है कि विधायक कभी भी क्षेत्र का दौरा नहीं करते हैं, जलनिकासी, जो एक अहम समस्या बनकर सामने है, उसके लिए काम नहीं किया जा रहा है.

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