क्या राजस्थान के ‘जादूगर’ बिहार में दिखा पाएंगे जादू, गहलोत-तेजस्वी मीटिंग की इनसाइड स्टोरी

इस मुलाकात से कई बड़े संदेश गए: पहला, यह कि कांग्रेस अब भी गठबंधन में “सीनियर पार्टनर” की भूमिका निभाना चाहती है, लेकिन तेजस्वी यादव को नेतृत्व का मौका देने में पीछे नहीं है.

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बिहार में महागठबंधन के बीच क्या बन गई बात
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  • महागठबंधन के अंदर सीट बंटवारे को लेकर चल रही खींचतान को खत्म करने के लिए अशोक गहलोत पटना पहुंचे
  • गहलोत ने तेजस्वी यादव और राजद नेतृत्व से बातचीत कर महागठबंधन को एकजुट और मजबूत दिखाने का प्रयास किया
  • कांग्रेस और राजद ने विवादित सीटों पर समझौता किया, केवल कुछ सीटों पर ही फ्रेंडली फाइट की स्थिति बनी रहेगी
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पटना:

बिहार विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं और महागठबंधन (INDIA ब्लॉक) के भीतर सीट बंटवारे को लेकर चल रही खींचतान अपने चरम पर थी. इसी बीच राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत पटना पहुंचे. उनका मकसद था. तेजस्वी यादव और राजद नेतृत्व से बातचीत कर विवाद सुलझाना और गठबंधन को एकजुट दिखाना. कांग्रेस और राजद के बीच पिछले कुछ हफ्तों से सीट बंटवारे पर तकरार चल रही थी. कुछ सीटों पर दोनों दलों ने अपने-अपने उम्मीदवार उतार दिए थे, जिससे “friendly fight” की स्थिति बन गई थी.

ऐसे में कांग्रेस हाईकमान ने गहलोत को पटना भेजा ताकि वे तेजस्वी यादव से सीधे बात कर सकें और तनाव कम किया जा सके.गहलोत ने तेजस्वी के साथ लगभग एक घंटे तक मुलाकात की. बैठक में राजद प्रमुख लालू यादव भी कुछ देर के लिए शामिल हुए. इसके बाद गहलोत ने कहा कि महागठबंधन पूरी तरह एकजुट है. 243 सीटों में से सिर्फ 5-10 सीटों पर हल्की गड़बड़ी है, बाकी सब तय हो चुका है.

सूत्रों के मुताबिक गहलोत ने कांग्रेस के नेतावो, खास करके कृष्ण अलवरु, जो की कांग्रेस के बिहार प्रभारी है, उनको समझाया कि बिहार में राजद की स्थिति मज़बूत है, इसलिए थोड़ा झुकना ही समझदारी है. तेजस्वी ने भी भरोसा दिया कि कांग्रेस को बराबर सम्मान मिलेगा और प्रचार में दोनों दल एक साथ नज़र आएंगे. इस बैठक में तेजस्वी यादव को महागठबंधन के मुख्य प्रचार नेता  के रूप में पेश करने पर सहमति बनी. कांग्रेस की ओर से कहा गया कि तेजस्वी को “युवा चेहरा” बनाकर पेश करने से गठबंधन को फायदा होगा. पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर खबरें चल रही थीं कि महागठबंधन टूट सकता है. गहलोत-तेजस्वी की बैठक का उद्देश्य था. जनता को यह संदेश देना कि गठबंधन एक है, और चुनाव एकजुट होकर लड़ेगा.

दरअसल, नामांकन और टिकट वितरण के आखिरी दौर में कांग्रेस और राजद के बीच कई सीटों पर विवाद बढ़ गया था. कांग्रेस के कुछ नेताओं ने कहा था कि उन्हें “कमज़ोर सीटें” दी गईं. दूसरी ओर, राजद के नेता मानते थे कि कांग्रेस ज़रूरत से ज़्यादा सीटें मांग रही है. यह खींचतान मीडिया में खुलकर आने लगी थी, जिससे गठबंधन की छवि पर असर पड़ने लगा. ऐसे में गहलोत का पटना आना, एक संयमित चेहरा बनकर आगे आना, पार्टी हाईकमान की “damage control” रणनीति थी.

इस मुलाकात से कई बड़े संदेश गए: पहला, यह कि कांग्रेस अब भी गठबंधन में “सीनियर पार्टनर” की भूमिका निभाना चाहती है, लेकिन तेजस्वी यादव को नेतृत्व का मौका देने में पीछे नहीं है. दूसरा, बिहार की राजनीति में गहलोत जैसे अनुभवी नेता की मौजूदगी से कांग्रेस को “स्थिर और जिम्मेदार” पार्टी के रूप में दिखाने का मौका मिला. तीसरा, इस मुलाकात ने गठबंधन के अंदर चल रहे टूटन के माहौल को कुछ हद तक थाम दिया.

इस बैठक का सीधा असर यह हुआ कि कांग्रेस और राजद ने कई विवादित सीटों पर समझौता कर लिया. हालांकि 5-6 सीटों पर “फ्रेंडली फाइट” की स्थिति बनी रहेगी, लेकिन अब कम से कम यह संदेश चला गया कि गठबंधन बिखर नहीं रहा है. रजनीतिक तौर पर यह मुलाकात तेजस्वी यादव को और मज़बूत बनाती है. अब वे न सिर्फ राजद के नेता हैं, बल्कि महागठबंधन के प्रचार की केंद्रीय भूमिका में भी हैं.

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गहलोत की इस बैठक के बाद अब कांग्रेस और राजद मिलकर संयुक्त रैली और साझा घोषणापत्र जारी करने की योजना बना रहे हैं. हालांकि अंदरूनी असहमति अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है, लेकिन गहलोत-तेजस्वी की मुलाकात ने गठबंधन को फिलहाल राहत दे दी है. अब देखना यह है कि यह “एकजुटता की तस्वीर” वोट में बदलती है या नहीं. बिहार की सियासत में हर कदम एक संकेत होता है और गहलोत-तेजस्वी की यह मुलाकात, निश्चित रूप से, राजनीतिक संकेतों से भरी हुई है.

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