बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की हालत ऐसी हो जाएगी किसी को मालूम नहीं था. आरजेडी भले ही कहे कि वोट प्रतिशत उनका पिछले चुनाव के जितना ही रहा, मगर सवाल ये है कि सीटें इतनी कम कैसे रह गई कि नेता प्रतिपक्ष के पद पर भी आफ़त आते-आते रह गई. वैसे देखा जाए तो महागठबंधन ने प्रचार के लिहाज से सबसे पहले शुरुआत कर दी थी. राहुल गांधी, तेजस्वी, मुकेश सहनी, दीपांकर भट्टाचार्य ने 15 दिनों तक जो माहौल बनाया था वो उस वक्त में महागठबंधन के तरफ झुका हुआ था. फिर कांग्रेस ने आजादी के बाद पटना के अपने दफ्तर में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक की मगर उसके बाद पार्टी शांत बैठ गई.
महागठबंधन की हार की कई वजह
तेजस्वी यादव ने जरूर अपनी एक अलग यात्रा निकाली, मगर उसका कितना फायदा मिला कह नहीं सकते. यानि वोट अधिकार यात्रा के दौरान मिली बढ़त को महागठबंधन ने यूं ही जाने दिया. राहुल गांधी इस यात्रा के बाद बिहार से गायब हो गए और तेजस्वी अकेले पड़ गए. कई जानकार अब मानते हैं कि महागठबंधन ने ये वक्त बर्बाद किया. महागठबंधन के हार के कारणों में सबसे अहम रहा सीटों के बंटवारे में हुई देरी या कहें छीछलेदारी. महागठबंधन में सात दल थे. राजद, कांग्रेस, वीआईपी, माले, सीपीआई, सीपीएम और आईआईपी मगर कौन कितनी सीट लड़ेगा. ये अंत तक तय नहीं हो पाया जिसका नतीजा ये हुआ कि कम से कम 11 जगहों पर महागठबंधन में फ्रेंडली फाइट हुई. जिसे बाद में सुसाईडल फाइट कहा जा रहा है.
महागठबंधन की कलह उजागर
इस सुसाइडल फाइट ने एनडीए को मौका दिया, महागठबंधन पर हमला करने का कि इनके घर में ही कलह है. एक और मामला रहा, जिसने महागठबंधन में आपसी अंतर्कलह को खुल कर सामने ला दिया. वो था मुख्यमंत्री पद के लिए तेजस्वी के नाम में घोषणा करने में हुई देरी. कांग्रेस के स्थानीय नेतृत्व ने इसका उपयोग सीटों की सौदेबाजी के लिए किया. तेजस्वी को तब तक लटकाए रखा जब तक कांग्रेस को लगा जब तक उनके मनमाफिक सीटें नहीं मिल गई है. इतनी क़वायद के बाद भी कांग्रेस के सीटों की संख्या दहाई अंक तक नहीं पहुंच पाई.
टिकट काटना पड़ा कितना भारी
तेजस्वी यादव ने इस बार अपने करीब तीन दर्जन विधायकों का टिकट काट दिया था. तब लगा था कि ये एक बेहद साहसिक कदम है और इससे आरजेडी ने अपने विधायकों के सत्ता विरोधी लहर यानि ऐंटी इनकंबेसी को खत्म किया है. मगर यह दांव भी उल्टा पड़ गया. लगता है कि टिकट ना पाने वाले विधायकों ने भीतरघात किया, जिसका ख़ामियाज़ा आरजेडी को भुगतना पड़ा. एक और कारण रहा, जिसने सीमांचल में एक बार फिर महागठबंधन को दगा दी. वह था ओवैसी से गठबंधन ना करना. चुनाव के शुरूआत में ही ओवैसी ने राजद से 5 सीटें मांगी थी, शायद चार पर बात बन भी जाती. ओवैसी की पार्टी ने ढोल नगाड़े के साथ लालू राबड़ी निवास पर गठबंधन के लिए गए भी थे.
ओवैसी फैक्टर का भी महागठबंधन को नुकसान
ओवैसी की पार्टी ने लालू यादव और तेजस्वी को इस बारे में खत भी लिखा था. मगर महागठबंधन का और ओवैसी की पार्टी का तालमेल नहीं हो सका और ओवैसी ने सीमांचल में अपना दबदबा कायम रखा और महागठबंधन को नुकसान पहुंचाया. अब महागठबंधन के कुछ नेता मानते हैं कि ओवैसी से गठबंधन करना चाहिए था और एक मुस्लिम उपमुख्यमंत्री पद की भी घोषणा करनी चाहिए थी. इस पूरे चुनाव में तेज प्रताप और तेजस्वी की बीच की दूरी भी लंबी होती दिखाई दी. तेज प्रताप ने अपनी अलग पार्टी बनाई, महुआ सीट से लड़े भी और हारे भी. मगर लोगों में यह संदेश गया कि लालू परिवार में सब कुछ ठीक नहीं है. इसका वोटों पर कितना असर पड़ा कह नहीं सकते, मगर लोगों ने इस पर चर्चा जरूर की.
आरजेडी को सहयोगियों का साथ भी पड़ा भारी
आरजेडी के घटक सहयोगी दलों ने भी बहुत खराब प्रदर्शन किया. 61 सीट लड़ कर कांग्रेस 6 जीती, माले 30 सीटों पर लड़ीं जीती सिर्फ 2 ही, सीपीएम 2 ,आईआईपी 1 जीती. जबकि उपमुख्यमंत्री के दावेदार घोषित किए जाने वाले मुकेश सहनी की पार्टी का खाता तक नहीं खुला. अब ये कहा जा रहा है कि मुकेश सहनी के उपमुख्यमंत्री पद दिए जाने से बाकी अति पिछड़ी जातियां बिदक गई और महागठबंधन को नुकसान हो गया. इस चुनाव में आरजेडी का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन रहा है और अब तेजस्वी को क्या करना है यह वो खुद अच्छी तरह जानते हैं, उनके पास अभी भी लालू यादव जैसे शख्स हैं जो बिहार और चुनाव को बहुत अच्छी तरह जानते हैं.
तेजस्वी को राजनीति में मंझने की जरूरत
तेजस्वी को लालू यादव के पास बैठने और उनसे सीखने की जरूरत है. आरजेडी के पास अभी भी अपना बेस वोट है और उसमें वोट जोड़ने की जरूरत है, इसके लिए पार्टी में अन्य पिछड़ी जातियों को प्रमुखता से जगह देने की जरूरत है. तेजस्वी के पास अभी वक्त है, उम्र है, चुनाव लड़ने का अनुभव भी है. जरूरत लगातार मेहनत करने और पार्टी के सेटअप में बदलने की. उम्मीद है तेजस्वी भी कुछ ऐसा ही सोच रहे होंगे, बस निराश ना हों क्योंकि गिरकर फिर उठ कर चलने का साहस और हिम्मत होनी चाहिए.














