नीतीश कुमार के वो 5 सबसे बड़े दांव, जिन्होंने उखाड़ दिया महागठबंधन का चुनावी तंबू

तेजस्वी यादव नीतीश कुमार को अचेत मुख्यमंत्री कहते थे. लेकिन उन्होंने सत्ता विरोधी लहर, बढ़ती उम्र, राजनीतिक थकान और घटती लोकप्रियता जैसी अटकलों को गलत साबित करते हुए सत्ता में जोरदार वापसी की है.

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प्रधानमंत्री मोदी-मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रचंड आंधी में इंडिया गठबंधन का तंबू उखड़ गया है. इनकी लोकप्रियता के सामने न तेजस्वी टिक पाए, न ही कांग्रेस-लेफ्ट और न ही मुकेश सहनी. बिहार चुनाव 2025 में एनडीए की बंपर जीत और जेडीयू की अप्रत्याशित मजबूत वापसी से नीतीश ने साबित कर दिया है कि बिहार के राजनीति के किंग वही हैं. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव नीतीश कुमार को अचेत मुख्यमंत्री कहते थे. सत्ता विरोधी लहर, उम्र का पड़ाव, राजनीतिक थकान और घटती लोकप्रियता की अटकलों को गलत साबित करते हुए उन्होंने फिर से सत्ता में वापसी की है. 

इस चुनाव में बीजेपी ने 89 और जेडीयू ने 85 सीटों पर जीत दर्ज की है, वहीं चिराग पासवान की पार्टी 19 सीटों पर जीतकर आई है. एनडीए में शामिल HAM को 5 और उपेन्द्र कुशवाहा को 4 सीटें मिली हैं. नीतीश की सत्ता में वापसी के पीछे सामाजिक संतुलन, महिला वोट, संगठनात्मक मजबूती और सुशासन की छवि की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. टाइगर अभी ज़िंदा है... का पोस्टर उनके राजनीतिक लचीलापन को दिखाता है. नीतीश की जीत के पीछे ये कारण प्रमुख रहे- 

महिलाओं का विश्वास जीतने में सफल

2005 में सत्ता में आने के बाद से नीतीश कुमार ने महिलाओं के लिए एक से बढ़कर एक निर्णय लिए हैं. लड़कियों के लिए पोशाक योजना, साइकिल योजना, शराबंदी, जीविका जैसे फैसलों ने नीतीश को महिलाओं की नजर में लोकप्रिय बनाया. महिलाओं को आर्थिक रूप से समृद्ध करना, सुरक्षा का माहौल बनाना नीतीश सरकार के प्रमुख एजेंडे में रहा. बिहार चुनाव से पहले महिलाओं के खाते में 10-10 हजार रुपये देने की योजना निर्णायक टर्नअराउंड फैक्टर बनकर सामने आई. इससे महिला वोटरों का भरोसा उन पर मजबूत हुआ और विपक्ष की रणनीति कमजोर हुई. 

यह भी एक तथ्य है कि दलित, ईबीसी का एक बड़ा वर्ग, कुशवाहा वोट सब एनडीए के लिए एकजुट रहे. टिकट बंटवारे में भी जातीय समीकरणों का विशेष ध्यान रखा गया. दूसरी तरफ, तेजस्वी यादव इस बार भी मुस्लिम-यादव वोटरों से आगे नहीं बढ़ पाए और अपने बेस वोट का विस्तार नहीं कर पाए. 2020 के चुनाव में तेजस्वी ने एक हद तक अपने वोट बेस का विस्तार किया था. नए वर्ग के वोटर उनसे जुड़े थे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो सका और इसका फ़ायदा नीतीश को मिला. 

जंगलराज का डर RJD के लिए घातक

प्रधानमंत्री मोदी और सीएम नीतीश कुमार ने अपनी चुनावी सभाओं में अन्य मुद्दों के साथ जंगलराज के मुद्दे को जोरशोर से उठाया. वो जंगलराज के खौफ को जिंदा रखना चाहते थे, खासकर उन युवाओं में  जिन्होंने लालू-राबड़ी कार्यकाल को नहीं देखा. जंगलराज के नैरेटिव को अब भी प्रासंगिक बनाए रखने में वो काफी हद तक कामयाब रहे. राजद के लिए लालू-राबड़ी के कार्यकाल की जंगलराज वाली छवि को भेदना अब भी एक बड़ी चुनौती है. दूसरी तरफ, विगत वर्षों की कुछ घटनाओं को छोड़ दें तो नीतीश कुमार ने अपनी 'सुशासन बाबू' की छवि कायम रखी है. नीतीश के लंबे कार्यकाल के बावजूद क़ानून-व्यवस्था, सड़क-बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं में सुधार उनके पक्ष में काम करते हैं.

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नीतीश के आखिरी चुनाव का संदेश

बिहार के आम आवाम में यह संदेश देने में सफल रहे कि नीतीश कुमार की राजनीतिक पारी का यह अंतिम चुनाव है. इससे नीतीश कुमार के प्रति सहानभूति बनी. कुछ लोगों के शब्दों में कहें तो यह नीतीश कुमार का फ़ेयरवेल इलेक्शन था और बिहार के मतदाताओं ने वोट के ज़रिए अपने नेता को एक अच्छा फ़ेयरवेल दिया.

आम लोगों के लिए खोला खजाना

विधानसभा चुनाव से एक साल पहले से नीतीश कुमार ने आम लोगों के लिए सरकारी खजाना खोलना शुरू कर दिया था. सरकार ने कई बड़े फैसले लिए, जिन्होंने एंटी इनकंबेंसी को कम किया. हर घर को 125 यूनिट फ्री बिजली, एक करोड़ 21 लाख महिलाओं के अकाउंट में सीधे 10-10 हजार रुपये भेजना, वृद्धावस्था पेंशन को 400 से बढ़ाकर 1100 रुपये करना, जीविका दीदियों के लिए फ्री इंश्योरेंस, शिक्षकों की बंपर बहाली जैसे फैसलों ने जनता के दिलोदिमाग पर सीधा असर डाला. इन्हीं वजहों से नीतीश कुमार एक बड़े तबके में स्थिरता, अनुभव और शासन की निरंतरता के प्रतीक बने हुए हैं.

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