- बिहार में ताजा चुनाव में जनता ने एनडीए को भारी जनादेश देकर सत्ता में बनाए रखने का निर्णय लिया है.
- नई सरकार का मुख्य फोकस औद्योगीकरण बढ़ाने और पलायन रोकने के साथ सामाजिक वर्गों को समुचित स्थान देना होगा
- भाजपा के विधायक मंत्रालयों में अपने प्रभाव को मजबूत करने की कोशिश करेंगे
शुक्रवार को बिहार की जनता ने तख्त नहीं पलटा... बल्कि तख्त को उठाकर एनडीए के ही हवाले कर दिया. ऐसे जनादेश की अपेक्षा शायद ही कोई एनडीए वाला कर रहा होगा. लेकिन पिछले 20 वर्षों में यही नजर आया की नीतीश जिधर गए , जनादेश उधर ही गया. अब सभी का ध्यान सरकार की ओर गया है. अब यह कहीं नहीं छुपा है कि किसके मतों से सरकार बनी है. फिर उन मतों को किस हद तक नई सरकार में समुचित स्थान मिलता है. महिला, अति पिछड़ा और सवर्ण अपनी-अपनी जगह तलाशेंगे. नीतीश के बाएं और दायें खड़े कुर्मी और कुशवाहा भी जगह तलाशेंगे. नीतीश कुमार के बाद कौन पर सवाल तेज होंगे .
इसी बीच बिहार का नौकरशाह बहुत निश्चित नज़र आ रहा है. भीषण जनादेश में नौकरशाही की लगाम शीर्ष नेतृत्व के हाथ में होती है. लोकल एमएलए अपनी लोकल राजनीति के चलते अफसरशाही पर ज्यादा लगाम नहीं लगा पाते हैं . ऊपर के आदेश को ही अफसरशाही मानते हैं जो अक्सर समुचित विकास को होता है.
सरकार में अब क्या होगा BJP का रोल
लेकिन अभी तक प्रशासन और अफसरशाही नीतीश के कंट्रोल में रहती थी . इस बार इसमें एक बड़ा नियंत्रण भाजपा भी रखना चाहेगी. सन 2019 का पटना बाढ़ के बाद भाजपा के तत्कालीन नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा ने कहा था की विभाग का एक क्लर्क तक उनकी नहीं सुनता . इस बार ऐसा नहीं होगा. अफसरशाही भाजपा के नेताओं को सुनने पर बाध्य होगी क्योंकि नीतीश कुमार उम्र के साथ साथ संख्या पर भी बारगेन की स्थिति में नहीं हैं. ऊपर से उनके दल के केंद्रीय मंत्री ललन सिंह भी मोदी के करीबी बन गए हैं .
पुराने सभी कार्यक्रम चलते रहेंगे. अति पिछड़ा और महिलाओं के कार्यक्रम चलते रहेंगे लेकिन इस बार की सरकार का फोकस औद्योगीकरण को बढ़ाना और पलायन को रोकना होगा. पिछले बार की तरह इस बार भी भाजपा यह मंत्रालय स्वयं के पास रखना चाहेगी. पूर्व मुख्यमंत्री डॉ जगनाथ मिश्रा के पुत्र नीतीश मिश्रा इस काम के लिए सबसे बेहतर रहे हैं .
नई सरकार के माध्यम से भाजपा अपने वोट बैंक का भी विस्तार करना चाहेगी. दो दशक से वो यादव वोट बैंक में सेंध लगाना चाह रही है. इस बात टूटने और रूठने की खबर है . भाजपा के स्वयं के संपूर्ण सत्ता का रास्ता इसी समीकरण से जाएगा. नीतीश के कंधे का सहारा लेकर भाजपा ऊपर अवश्य उठना चाहेगी. सत्ता पर नियंत्रण का भी खेल रहेगा क्योंकि जनादेश ने नीतीश को इधर ही रहने को लॉक कर दिया है. पलटने का कोई सवाल ही नहीं पैदा हो रहा है. उपेन्द्र कुशवाहा और मांझी के साथ महागठबंधन की ओर अभी सोचना कल्पना से बाहर है .
मंत्रिमंडल के नए सामाजिक स्वरूप के साथ विभागों का बंटवारा भी नए कदम की ओर इशारा करेगा. फिर उन विभागों के नौकरशाहों की नियुक्ति भी सरकार के विजन को दिखायेगा. अगले साल बिहार में पंचायत चुनाव होने वाले हैं, उनको लेकर सरकार की दिशा तय होगी क्योंकि लोकतंत्र का आधार पंचायत से ही बनता है.
कुल मिलाकर इस बार की प्रचंड जनादेश वाली सरकार औद्योगीकरण के साथ-साथ पलायन पर भी कोई हल युद्ध स्तर पर निकाल सकती है. क्योंकि हर घर उद्योग और हर हाथ रोजगार के अलावा बिहार को गरीबी से बाहर निकालने का कोई और रास्ता नहीं है . लेकिन उसी बीच में अपनी अपनी राजनीति भी होगी .
फ़िलहाल सभी नव निर्वाचित विधायक बधाई संदेश के साथ अब अपने अपने क्षेत्र से राजधानी पटना की ओर निकलेंगे. जहां वो शीर्ष नेताओं से भेंट मुलाक़ात करेंगे. वहींदो बार से ज़्यादा के विधायक मंत्री परिषद में अपनी जगह सुनिश्चित करेंगे .














