सीमांचल में ओवैसी संग गठबंधन से क्यों डर रहे तेजस्वी, जरा 24 सीटों का पूरा खेला समझिए

सीमांचल में ओवैसी पिछले चार दिनों से डेरा डाले हुए हैं. कई विश्लेषक इसे आरजेडी या महागठबंधन पर दबाव बनाने की रणनीति के रूप में भी देख रहे हैं ताकि महागठबंधन से उनका गठबंधन हो जाए.

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  • सीमांचल की 24 विधानसभा सीटों पर AIMIM के असदुद्दीन ओवैसी तेज चुनाव प्रचार में जुटे हैं
  • 2020 में AIMIM ने सीमांचल की 24 सीटों में से 5 पर जीत हासिल की थी और बाकी सीटों पर मजबूत स्थिति में थी
  • RJD और महागठबंधन ओवैसी से इसलिए नाराज है क्योंकि 2015 में जीतीं सीटें 2020 में AIMIM के पास चली गई थीं
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बिहार चुनाव से पहले सीमांचल की 24 सीटों पर कई पार्टियों के बीच जंग छिड़ी हुई है. सीमांचल में AIMIM के असदुद्दीन ओवैसी पिछले चार दिनों से डेरा डाले हुए हैं. चुनाव प्रचार के लिहाज से देखा जाए तो ओवैसी ने एक तरह से फिलहाल लीड लिया हुआ है. कई विश्लेषक इसे आरजेडी या महागठबंधन पर दबाव बनाने की रणनीति के रूप में भी देख रहे हैं ताकि महागठबंधन से उनका गठबंधन हो जाए.

2020 में औवेसी का प्रदर्शन

इस सच्चाई से भी हालांकि इनकार नहीं किया जा सकता है कि ओवैसी की पार्टी ने 2020 में इस इलाके में अच्छा प्रदर्शन किया था. सीमांचल की 24 सीटों में से 20 सीटों पर ओवैसी ने अपने उम्मीदवार खड़े किए थे, जिसमें से 5 सीटों पर जीत मिली थी. इन पांच सीटों के अलावा किसी भी सीट पर ओवैसी की पार्टी दूसरे नंबर पर नहीं थी और 4 सीटों पर तीसरे नंबर की पार्टी थी. 

4 जिलों में से 3 में जीते 

ओवैसी की पार्टी ने जो सीटें जीतीं थीं, उसमें अररिया की जोकीहाट, किशनगंज की बहादुरगंज व कोचाधामन, पूर्णिया की अमोर और बायसी सीट शामिल है. यानी सीमांचल के चार जिलों में से तीन में जिलों में ओवैसी को सफलता मिली थी. इस बार अभी तक यह साफ नहीं है कि ओवैसी कितनी सीटों पर लड़ेंगे, मगर उन्होंने अपना प्रचार जरूर शुरू कर दिया है. 

RJD की ओवैसी से नाराजगी

सबसे बड़ी बात है कि ओवैसी ने जिन पांच सीटों पर जीत हासिल की थी, उसमें से आरजेडी, वीआईपी और बीजेपी एक-एक सीट पर दूसरे स्थान पर थी, बाकी दो सीट पर जेडीयू रही थी. जबकि 2015 के चुनाव में ये सभी सीटें महागठबंधन ने जीतीं थी, जो 2020 में ओवैसी के खाते में चली गईं. इसी बात से आरजेडी आज तक ओवैसी से नाराज है और गठबंधन अधर में लटका हुआ है.

NDA और महागठबंधन टक्कर में

ओवैसी की वजह से ही महागठबंधन की सीमांचल में सीटों की संख्या जो 2015 में 24 में से 17 थी, 2020 में 7 रह गई थी. उसमें भी 5 सीट कांग्रेस, एक आरजेडी और एक माले के खाते में गई थी. यदि 2024 के लोकसभा के आंकड़ों को विधानसभा में बांटें तो भी कांग्रेस 6 सीट पर, आरजेडी 2 पर और पप्पू यादव की पार्टी 4 सीट पर आगे है. इस लिहाज से महागठबंधन की ताकत 2020 के 7 सीट के मुकाबले 12 हो गई है. यानी लोकसभा के आंकड़ों के मुताबिक़, एनडीए और महागठबंधन बराबर की स्थिति में है.  

क्या अनदेखा करेगा महागठबंधन?

यहां ये बताना जरूरी है कि ओवैसी लोकसभा चुनाव में अपना उम्मीदवार नहीं उतारते हैं. बिहार के चुनाव में जहां पिछली बार वोटों का अंतर महज 11 हजार 150 वोटों का था, यानी 0.03 फीसदी और बूथ के हिसाब से देखें तो 46 वोट प्रति वोट. ऐसे हालात में क्या महागठबंधन ओवैसी को नज़रअंदाज़ कर सकता है और क्या उसे करना चाहिए? यहां एक-एक वोट क़ीमती है. ऐसे में सीमांचल में महागठबंधन को अपनी रणनीति पुख्ता बनानी होगी. 

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कांग्रेस भी मजबूत स्थिति में

सीमांचल में कांग्रेस मजबूत स्थिति में है. किशनगंज और कटिहार से उसके सांसद जीते हुए हैं तो पूर्णिया से पप्पू यादव जीते हैं, जो कांग्रेस के पाले में हैं यानी कांग्रेस भी पहल कर सकती है. वैसे सीमांचल में प्रधानमंत्री ने दौरा करके चुनावी सरगर्मी तो तेज कर ही दी है. पूर्णिया एयरपोर्ट का उद्घाटन और मखाना बोर्ड के गठन की घोषणा करके लोगों को एक उम्मीद देने की कोशिश की है. 

सीमांचल की पुरानी मांगें 

हाल के दिनों में यहां मखाना की खेती बड़े पैमाने पर की जाने लगी है. यदि यहां के मखाना किसानों को अच्छी कीमत मिलनी शुरू हो जाए तो सीमांचल का भला हो जाएगा. इस इलाके में एम्स की मांग बहुत पुरानी है. जूट मिल और अन्य उद्योग यहां आते हैं तो बिहार के इस सबसे गरीब इलाके को बेहतर किया जा सकता है. सीमांचल और कोसी का इलाका हर साल बाढ़ की चपेट में रहता है. इसका कोई हल ढूंढना ही होगा. इस चुनाव में भी सभी दल हाथ-पांव मार रहे हैं. 

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राहुल गांधी की वोट अधिकार यात्रा भी यहां से गुजरी, फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली हुई. ओवैसी भी लगातार चार दिन यहां घूमे. चिराग पासवान भी पूर्णिया में रैली कर चुके हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी दौरा कर रहे हैं. कहने का मतलब है कि सीमांचल की 24 विधानसभा सीटों पर सबकी नजर है.

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