हिलसा विधानसभा सीट: जेडीयू और आरजेडी के बीच कांटे की टक्कर का इतिहास, 2025 में किसका पलड़ा भारी?

हिलसा सीट का इतिहास कांटे की टक्कर के लिए प्रसिद्ध है. 2020 में JDU के कृष्ण मुरारी शरण ने RJD के अत्रिमुनि उर्फ शक्ति यादव को महज 12 वोटों के अंतर से हराया था.

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नालंदा:

Assembly Seat) नालंदा जिले में स्थित है और यह नालंदा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है. यह एक सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित सीट है. नालंदा जिले की अन्य सीटों की तरह इस पर भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले का प्रभाव रहता है, लेकिन हिलसा का चुनावी इतिहास जनता दल यूनाइटेड (JDU) और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के बीच कांटे की टक्कर के लिए जाना जाता है. यह क्षेत्र शहरी और ग्रामीण आबादी का मिश्रण है.

इस बार कैसी है फाइट?

नालंदा जिले की हिलसा सीट पर जेडीयू की तरफ से निवर्तमान विधायक कृष्ण मुरारी शरण उर्फ प्रेम मुखिया तो आरजेडी की ओर से पूर्व विधायक शक्ति सिंह मैदान में दमखम आजमा रहे हैं. जन सुराज ने उमेश वर्मा को उतारकर अपनी ताकत दिखाने का प्रयास किया है. कांटे की टक्कर के लिए चर्चित रही यह सीट इस बार क्या रुख लेगी, बस कुछ देर में पता चल जाएगा. हिलसा में इस बार 63.20 फीसदी मतदान दर्ज किया गया है. 

इस बार क्या खास मुद्दे हैं?

हिलसा में चुनाव परिणाम अक्सर राजनीतिक गठबंधन और जातीय गोलबंदी के आधार पर तय होते हैं, जबकि विकास के मुद्दे भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

  • क्षेत्र की ग्रामीण आबादी कृषि पर निर्भर है, इसलिए पर्याप्त सिंचाई सुविधाएं और किसानों को उचित सरकारी सहायता की मांगें प्रमुख रहती हैं.
  • स्थानीय युवाओं के लिए रोज़गार सृजन हेतु कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा देना एक प्रमुख चुनौती है.
  • हिलसा नगर निकाय क्षेत्र में बेहतर जल निकासी, स्वच्छता और यातायात प्रबंधन के साथ शिक्षा  की आवश्यकता है.
  • बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं और शिक्षा के केंद्रों की गुणवत्ता में सुधार करना एक निरंतर चुनावी एजेंडा रहता है.

वोटों का गणित क्या है? 

चुनाव आयोग द्वारा 30 सितंबर 2025 को जारी अंतिम मतदाता सूची के अनुसार, हिलसा विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 3 लाख से ऊपर है. यह नालंदा जिले की सबसे बड़ी वोटर संख्या वाली सीटों में से एक है. इसमें लगभग 1.59 लाख पुरुष मतदाता और 1.43 लाख महिला मतदाता हैं. 2020 के बाद इस सीट पर मतदाताओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. इस सीट पर अनुमानित औसत मतदान प्रतिशत 51% से 55% के बीच रहता है. 

सामाजिक समीकरणों की दृष्टि से देखें तो यादव और कुर्मी मतदाताओं की संख्या यहां पर काफी ज्यादा और निर्णायक है. यादव मतदाता राजद का मुख्य आधार हैं जबकि कुर्मी मतदाताओं को जदयू के पक्ष में माना जाता है. इनके अलावा मुस्लिम (10-12%), अति पिछड़ा वर्ग (EBC) और दलित मतदाताओं की हिस्सेदारी भी परिणाम को प्रभावित करती है.

पिछली हार-जीत का हिसाब

हिलसा सीट का चुनावी इतिहास बेहद करीबी मुकाबलों से भरा रहा है. 2020 के विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड (JDU) के कृष्ण मुरारी शरण (उर्फ प्रेम मुखिया) ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के अत्रिमुनि उर्फ शक्ति यादव को महज 12 वोटों के अंतर से हराया था. यह सीट के करीबी मुकाबले का रिकॉर्ड है. 

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इससे पहले 2015 के विधानसभा चुनाव में RJD के शक्ति सिंह यादव ने लोजपा के दीपिका कुमारी को 2,600 से अधिक वोटों के अंतर से हराया था. यह दिखाता है कि यह सीट हमेशा कांटे की रही है.

इस बार माहौल क्या है? 

हिलसा विधानसभा सीट हमेशा जेडीयू और आरजेडी के बीच कांटे की टक्कर के लिए जानी जाती रही है, जिसका सबूत 2020 में 12 वोटों के अंतर से मिली जीत है. 2025 के विधानसभा चुनाव में ऐसी ही कांटे की टक्कर के आसार हैं. एनडीए अपने मजबूत कुर्मी वोट बैंक और लोकसभा की बढ़त को भुनाने की कोशिश करेगा. वहीं महागठबंधन के RJD के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का विषय है. वह यादव-मुस्लिम वोट बैंक को लामबंद करके 2020 की हार का बदला लेने में जुटी है.

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