राजनीति में नेताओं की बॉडी लैंग्वेज का भी एक अलग ही महत्व है. कई बार नेता बगैर एक भी शब्द कहे अपने बॉडी लैंग्वेज से ही अपने विरोधियों की नींद उड़ा देते हैं. मौजूदा राजनीति में अगर बिहार की बात हो तो नीतीश कुमार ऐसे नेता कहे जा सकते हैं, जो अकसर अपनी बॉडी लैंग्वेज से अपने विरोधियों को उनकी अगली रणनीति को लेकर सोचने को मजबूर कर देते हैं. गुरुवार को पटना स्थित राजभवन में जब सीएम नीतीश कुमार सूबे के नए राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को बधाई देकर लौटे तो उनकी बॉडी लैंग्वेज ने भी ना चाहते हुए भी काफी कुछ कह दिया.
चेहरे पर मंद मुस्कान और हाथ जोड़े कर मीडिया का अभिवादन स्वीकार करते नीतीश कुमार के इस फोटो कुछ भी नया नही हैं. वो पहले भी कई बार ऐसे मौकों पर बगैर कुछ ही काफी कुछ कह चुके हैं. गुरुवार को जब मीडिया ने नीतीश कुमार से लालू यादव की टिप्पणी को लेकर उनसे सवाल किया तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा अरे आप लोग भी ना. उनकी इस मुस्कान का मतलब ना तो साफ तौर पर ना था और ना ही हां.
आखिर क्यों हो रही है चर्चा
नीतीश कुमार की चुप्पी और उनके मंद मंद मुस्कान को लेकर आज हम कुछ यूं ही चर्चा नहीं कर रहे हैं. दरअसल, कुछ दिन पहले लालू यादव ने कहा था कि नीतीश कुमार के लिए दरवाजे खुले हैं. नीतीश आते हैं तो साथ कहां नहीं लेंगे. ले लेंगे साथ. नीतीश साथ में आएं, काम करें. नीतीश कुमार भाग जाते हैं, हम माफ कर देंगे. उनके इस बयान के बाद से ही मीडिया ने जब नीतीश कुमार से लालू यादव के बयान पर सवाल पूछा तो उन्होंने मुस्कुराते हुए हाथ जोड़ लिए.
तेजस्वी के बयान से शुरू हुई नई बहस
लालू प्रसाद यादव के बयान को लेकर जैसे ही तेजस्वी यादव का बयान आया तो उसपर भी नई बहस शुरू हो गई. तेजस्वी यादव ने अपने बयान में कहा था कि लालू यादव की बातों को ज्यादा गंभीरता से ना लें. तेजस्वी यादव के इस बयान को लेकर कुछ लोगों ने ये भी कयास लगाना शुरू कर दिया कि क्या आरजेडी के अंदर सब कुछ ठीक है. इस तरह की बातों के पीछे का तर्क भी काफी तर्कपूर्ण लग रहा है. कहा जा रहा है कि एक तरफ जहां लालू जहां नीतीश को फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट भेज रहे हैं, वहीं बेटे, चाचा के लिए दरवाजे बंद कर रहे हैं. दूसरी तरफ नीतीश ने भी लालू के बयान को यह कहते हुए तवज्जो देने ले इनकार किया कि लालू जो बोलते हैं, वह मायने नहीं रखता है.