बिहार विधानसभा चुनाव: कांग्रेस के गढ़ 'अररिया' में जदयू-भाजपा की राह मुश्किल

कृषि इस जिले की आर्थिक रीढ़ है. धान, मक्का, जूट, गन्ना और सब्जियां (बैंगन, टमाटर, मिर्च) यहां की उपजाऊ मिट्टी में खूब उगती हैं. हालांकि, अनुकूल जलवायु और मिट्टी के बावजूद औद्योगिक विकास न के बराबर है.

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  • 1951 से 2020 तक कुल 18 चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस ने सात बार और निर्दलीय उम्मीदवारों ने 4 बार जीत हासिल की है.
  • भाजपा ने 2005 के दोनों चुनावों में जीत दर्ज की जबकि लोजपा ने 2009 और 2010 में इस सीट पर कब्जा बनाया था.
  • 2020 में मुस्लिम मतदाता करीब 56.3 प्रतिशत थे और कांग्रेस के अबिदुर रहमान ने बहुमत वोट लेकर जीत हासिल की थी.
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बिहार के अररिया जिले में स्थित अररिया विधानसभा सीट एक महत्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्र है. यह सीट पूर्णिया प्रमंडल के अंतर्गत आती है और क्षेत्र की सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. इस विधानसभा सीट का चुनावी इतिहास रोचक रहा है, जहां कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा और कभी निर्दलीय उम्मीदवार ने अपनी जीत का परचम बुलंद किया है. दरअसल, अररिया विधानसभा सीट क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनीति में अपनी रणनीतिक स्थिति के कारण चर्चा में रहती है.

अररिया में कौन कब जीता

अररिया जिला, जो नेपाल की सीमा से सटा हुआ है, अपनी विविध सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था के लिए जाना जाता है. 1951 से 2020 तक अररिया विधानसभा पर अब तक 18 चुनाव हुए हैं, जिनमें कांग्रेस ने 7 बार 1957, 1967, 1969, 1977, 1985, 2015 और 2020 में जीत हासिल की है. इसके बाद निर्दलीय उम्मीदवारों का नंबर आता है, जिन्होंने 1952, 1962, 1990 और 2000 में चार बार अपना दबदबा कायम रखा है. इसके अलावा, भाजपा ने दो बार (2005 के दोनों चुनाव) और लोजपा ने 2009 उपचुनाव और 2010 चुनाव में यह सीट अपने पास रखी है. साथ ही, अन्य दलों ने 1-1 बार यहां से जीत दर्ज की है.

हालांकि, इस सीट की खासियत यह है कि यहां से कोई भी पार्टी लगातार दो बार जीतने के बाद तीसरी बार जीत हासिल नहीं कर पाई है. भाजपा ने 2005 में (दोनों चुनाव में जीत), लोजपा ने 2009-2010 में और कांग्रेस ने 2015-2020 में लगातार दो-दो बार जीत हासिल की. इस रुझान के हिसाब से 2025 में कांग्रेस के लिए यहां की राह मुश्किल हो सकती है.

2020 विधानसभा चुनाव की बात करें तो यहां मुस्लिम वोटरों का काफी दबदबा रहा है. कांग्रेस के अबिदुर रहमान को 2020 में इस सीट पर 103,054 वोट मिले थे, जो 54.84 प्रतिशत था. उन्होंने जदयू की उम्मीदवार शगुफ्ता अजीम को 47,936 वोटों के अंतर से मात दी थी. हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में यहां राजद को बढ़त मिली थी, जो 'इंडिया गठबंधन' की मजबूत पकड़ को दर्शाता है.

चुनाव आयोग के अनुसार, 2020 चुनाव में यहां मुस्लिम मतदाता करीब 56.3 प्रतिशत थे, जबकि 12.8 प्रतिशत अनुसूचित जातियों की हिस्सेदारी है. इसके अलावा, युवा वोटर भी यहां निर्णायक भूमिका में हैं.

अररिया क्यों खास

बिहार की महत्वपूर्ण विधानसभा सीटों में शामिल अररिया की भौगोलिक स्थिति इसे और भी खास बनाती है. भारत-नेपाल सीमा के पास बसा यह जिला बांग्लादेश और भूटान से भी नजदीकी रखता है. सुवारा, काली, परमार और कोली जैसी नदियां इस क्षेत्र से होकर गुजरती हैं.

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इस जिले के नाम का भी एक रोचक किस्सा है. बताया जाता है कि ईस्ट इंडिया कंपनी के जिला कलेक्टर अलेक्जेंडर जॉन फोर्ब्स की कोठी को स्थानीय लोग 'रेसिडेंशियल एरिया' या 'आर-एरिया' कहते थे, जो समय के साथ स्थानीय उच्चारण में ढलकर 'अररिया' बन गया.

कृषि इस जिले की आर्थिक रीढ़ है. धान, मक्का, जूट, गन्ना और सब्जियां (बैंगन, टमाटर, मिर्च) यहां की उपजाऊ मिट्टी में खूब उगती हैं. हालांकि, अनुकूल जलवायु और मिट्टी के बावजूद औद्योगिक विकास न के बराबर है. स्थानीय बाजार और छोटे-मोटे उद्योग ही लोगों की आजीविका का सहारा हैं. यहां की सबसे बड़ी समस्या अररिया की पिछड़ी स्थिति है, जिस कारण यहां जरूरी सुविधाओं का भी अभाव है.

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