- बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में महागठबंधन के कई सहयोगी दल एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव मैदान में हैं
- बिहारशरीफ, राजापाकर, बछवाड़ा, वैशाली और बेलदौर जैसे संवेदनशील सीटों पर गठबंधन के भीतर उम्मीदवार आमने-सामने हैं
- सीट समन्वय की विफलता से मतदाताओं के बीच भ्रम बढ़ा है जिससे वोट स्प्लिट होने का खतरा है
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण (6 नवंबर) से ठीक पहले महागठबंधन के भीतर “फ्रेंडली फाइट” ने समीकरण गड़बड़ा दिए हैं. कागज़ पर एकजुटता, ज़मीन पर टकराव यहीं तस्वीर है. पहले चरण में कम-से-कम पांच सीटों पर साथी दल एक-दूसरे के सामने हैं, जिससे वोट-बैंक में सेंध और संदेश में भ्रम दोनों बढ़े हैं. चुनावी कैलेंडर साफ़ कहता है पहला चरण 6 नवंबर, दूसरा 11 नवंबर. यानी अब हर गलती महंगी पड़ेगी.
सबसे ज्यादा चर्चा उन सीटों की है जहां गठबंधन के साझेदार खुले मैदान में आमने-सामने हैं:
- बिहारशरीफ (नालंदा): CPI बनाम कांग्रेस. बिहार शरीफ ओमार खान (कांग्रेस ) VS शिव कुमार यादव (CPI) मैदान में है.
- राजापाकर (वैशाली): CPI बनाम कांग्रेस. CPI उम्मीदवार मोहित पासवान ने खुलकर कहा कि समन्वय समिति की मंज़ूरी के बिना कांग्रेस ने प्रत्याशी उतार दिया. वहीं इस सीट पर कांग्रेस की टिकट से प्रतिमा कुमारी मैदान में है.
- बछवाड़ा (बेगूसराय): CPI बनाम कांग्रेस. ‘लेनिनग्राद ऑफ़ बिहार' कहे जाने वाले इलाके में भी यही खींचतान है. इस सीट पर कांग्रेस के गरीबदास चुनाव लड़ रहे हैं और सीपीआई उम्मीदवार अवधेश राय भी चुनाव मैदान में हैं.
- वैशाली: RJD बनाम कांग्रेस. दोनों दलों के उम्मीदवार आमने-सामने हैं, जो गठबंधन की रणनीति पर सवाल खड़े करता है.संजीव सिंह (कांग्रेस) से हैं वहीं अजय कुमार कुशवाहा (राजद) के उम्मीदवार हैं.
- बेलदौर (खगड़िया): IIP बनाम कांग्रेस. इंडियन इन्क्लूसिव पार्टी (IIP) ने यहां ताल ठोंकी है, और सीट पर कांग्रेस से मुकाबला बन रहा है. बेलदौर मिथिलेश कुमार निषाद (कांग्रेस) की टिकट पर मैदान में हैं वहीं तनीषा भारती (IIP) से चुनाव मैदान में है.
यानी कहानी साफ़ है: पहले चरण की कई संवेदनशील सीटों पर “एक बनाम एक” नहीं, बल्कि “अपनों बनाम अपनों” की जंग चल रही है. बड़े मीडिया और चुनावी ट्रैकर भी मान रहे हैं कि महागठबंधन में दर्जन भर तक सीटों पर ओवरलैप और क्रॉस-फाइलिंग की स्थिति बनी, जिससे विरोधी NDA को फ़ायदा मिल सकता है.
बड़ा सवाल दरभंगा की गौरा-बौराम जैसी सीट पर बात बनी, बाकी जगह क्यों नहीं?
गौरा-बौराम में RJD के विद्रोही उम्मीदवार का प्रकरण इतना बढ़ा कि पार्टी को कठोर कदम उठाने पड़े और सीट VIP (विकासशील इंसान पार्टी) के खाते में मानी जाने लगी. यहां विद्रोह, निष्कासन और टिकट-ट्रांसफ़र की बातें हुई हालांकि अंतिम समय में मुकेश सहनी की पार्टी ने अपने उम्मीदवार को राजद के समर्थन में वापस ले लिया.
रणनीति में पिछड़ने का हो सकता है नुकसान
सीट-समन्वय की असफलता से जनता के बीच सही संदेश नहीं गया है. मतदाता के सामने “कौन हमारा उम्मीदवार?” जैसे बुनियादी सवाल खड़े हो जाते हैं.
वोट-स्प्लिट का गणित. एंटी-इंकम्बेंसी वोट दो-तीन हिस्सों में बंटता है और NDA को वॉकओवर-टाइप बढ़त मिल सकती है. कई ऐसी सीटें भी हैं जहां कम अंतर से हार जीत होती रही है.
क्या तेजस्वी यादव को होगा नुकसान?
महागठबंधन में टकराव का खामियाज़ा तेजस्वी यादव को भुगतना पड़ सकता है. क्योंकि वे महागठबंधन के सीएम फेस हैं. फ़्रेंडली फाइट की हर ख़बर का नैरेटिव-कोस्ट सीधे उनकी “मैनेजमेंट क्षमता” पर लिखा जा रहा है. यही कारण है कि अंतिम 48 घंटों में मैसेजिंग, बूथ मैनेजमेंट और ‘ट्रांसफ़रेबिलिटी ऑफ़ वोट' पर फोकस बढ़ा है; वरना पहले चरण की ठोकर दूसरे चरण के माइक्रो-नैरेटिव को भी प्रभावित कर सकती है.














