- कर्नाटक के एक युवा नेता कृष्णा अल्लावरू को बिहार का प्रभारी बनाना.
- फिर सालों से राज्य की कमान संभाल रहे अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह को बदलना.
- राजेश कुमार राम के रूप में एक दलित को बिहार कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाना.
- फिर कन्हैया कुमार के नेतृत्व में 'पलायन रोको, रोजगार दो' यात्रा निकलना.
यह कहानी है कांग्रेस (Congress) की, जो बिहार में विधानसभा चुनाव (Bihar assembly elections 2025) से पहले अपने इन फैसलों के कारण लगातार चर्चा में बनी रही. पलायन रोको, रोजगार दो यात्रा में राहुल गांधी, सचिन पायलट जैसे बड़े नेता बिहार पहुंचे. बयानबाजी हुई. कहा गया कि कांग्रेस इस बार पूरे दमखम से बिहार के चुनावी मैदान में उतर रही है. इन सब कवायदों से बिहार में मृतप्राय हो चुकी कांग्रेस में एक नई जान आती नजर आ रही हैं. लेकिन इन सब पूरी कवायद के बाद भी कांग्रेस को पिछली बार से कम सीटों पर चुनाव लड़ना पड़ सकता है.
बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस में पिछला प्रदर्शन
- बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था. इन 70 में कांग्रेस महज 19 सीटें ही जीत सकी थी. इस तरह से कांग्रेस का बिहार चुनाव में महज 27 फीसदी ही स्ट्राइक रेट रहा.
- बात बिहार विधानसभा चुनाव 2015 का करें तो इस साल कांग्रेस ने RJD और JDU के गठबंधन में लड़ा था. तब कांग्रेस ने 41 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. जिसमें से उसे 27 सीटों पर जीत मिली थी. यह कांग्रेस का 1995 के बाद यह सबसे बेहतर प्रदर्शन था.
- अब इस साल विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने अपनी तैयारी तो पूरजोर कर ली है, लेकिन पिछले चुनाव में जैसे कांग्रेस को 70 सीटें मिली थी, वो मिलना मुश्किल नजर आ रहा है.
बिहार चुनाव में कांग्रेस, राजद, लेफ्ट और VIP के साथ महागठबंधन में
बिहार में विधानसभा की कुल सीटें 243 है. इस बार कांग्रेस, राजद, लेफ्ट और वीआईपी का गठजोड़ महागठबंधन के नाम से चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में जुटी है. बीते दिनों दिल्ली में तेजस्वी यादव की मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी के साथ बैठक हुई थी. इस बैठक के बाद 17 अप्रैल को पटना में महागठबंधन नेताओं की बैठक हुई. अब महागठबंधन की अगली बैठक 24 अप्रैल को कांग्रेस मुख्यालय सदाकत आश्रम में होने वाली है.
महागठबंधन की पहली बैठक के बाद पटना में प्रेस कॉफ्रेंस के दौरान आपसी एकजुटता दिखाते सभी दल के नेता.
समझिए क्या है महागठबंधन की मजबूरी
इस बार महागठबंधन में राजद, कांग्रेस और लेफ्ट के साथ-साथ मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी (VIP) भी है. ऐसे में सीटों का बंटवारा चार पार्टियों में होना है. राजद इस गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी है. जाहिर है लालू की पार्टी सबसे अधिक सीटों पर चुनावी मैदान में उतरेगी. इसके बाद कांग्रेस, लेफ्ट और वीआईपी में सीटें बटेंगी. ऐसे में कांग्रेस को 70 सीटें मिले यह बहुत कम संभव नजर आ रहा है.
एनडीटीवी से खास बातचीत में मुकेश सहनी ने क्लियर की तस्वीर
इस बात की तस्दीक शुक्रवार को एनडीटीवी से खास बातचीत में वीआईपी नेता मुकेश सहनी ने भी की. मुकेश सहनी से जब पूछा गया कि कांग्रेस 70 सीट नहीं लड़ेगी, 70 से कम लड़ेगी क्या इस बात पर मीटिंग में चर्चा हुई है.
तब मुकेश सहनी ने कहा, "हां ये बात सही है. पिछली बार की परिस्थिति अलग थी, इस बार की परिस्थिति अलग है. इस बार महागठबंधन में वीआईपी भी शामिल है. वीआईपी के पास भी अपना जनाधार है. हमलोगों को भी अच्छी सीटें लड़नी है. ऐसे में कांग्रेस से कुछ सीटें निकाली जाएगी. राजद से भी कुछ सीटें निकाली जाएगी. नए सिरे से महागठबंधन के बीच सीटों का बंटवारा होगा."
वीआईपी कितनी सीटों पर लड़ेगी चुनाव, मुकेश सहनी ने बताया
वीआईपी कितनी सीटों पर चुनाव लडे़गी. इस सवाल पर मुकेश सहनी ने कहा कि वीआईपी महागठबंधन का हिस्सा है. महागठबंधन घटक दलों के बीच बैठक में हमलोग चर्चा करके तय कर लेंगे. इसमें 2-4 सीटें कम अधिक करके एडजस्ट कर लेंगे.
एनडीए में शामिल होने की चर्चा को मुकेश ने बताया गलत
एनडीए में शामिल होने की चर्चा पर मुकेश सहनी ने कहा कि यह बात बिल्कुल गलत है. मैं अभी महागठबंधन के साथ हूं. बीजेपी इस तरह की चर्चा फैला रही है. इसके पीछे का भी एक कारण है. एनडीए के जो सहयोगी हैं चिराग पासवान, जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा को यह बोला जाता है कि VIP पार्टी भी साथ आ रही है.
ऐसे में उसे भी कुछ सीटें देनी होगी. इस बहाना पर एनडीए अपनी छोटी सहयोगी पार्टियों को कम सीट देकर डील कर लेते हैं. बाद में वीआईपी को मिलने वाली सीटें भाजपा और जदयू में बांट ली जाती है.
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