अमौर विधानसभा सीट का चुनावी रण: जहां 70% मुस्लिम वोटर्स के बीच NDA की राह मुश्किल

बिहार की अमौर विधानसभा सीट, जो पूर्णिया जिले के अंतर्गत किशनगंज संसदीय क्षेत्र में आती है, एक बार फिर राज्य की सबसे हाई-प्रोफाइल सीटों में से एक बन गई है. 1951 में अस्तित्व में आई इस सीट का चुनावी इतिहास न केवल लंबा, बल्कि बेहद दिलचस्प रहा है.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
फटाफट पढ़ें
Summary is AI-generated, newsroom-reviewed
  • बिहार की अमौर विधानसभा सीट पूर्णतः ग्रामीण क्षेत्र में स्थित है और यहां मुस्लिम मतदाता लगभग सत्तर प्रतिशत हैं
  • इस सीट पर अब तक 18 विधानसभा चुनाव हुए हैं जिसमें केवल एक बार ही गैर-मुस्लिम उम्मीदवार ने जीत दर्ज की है
  • 2020 में AIMIM के अख्तरुल ईमान ने पहली बार इस सीट से जीत हासिल कर राजनीतिक समीकरणों में बदलाव किया था
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।

बिहार की अमौर विधानसभा सीट, जो पूर्णिया जिले के अंतर्गत किशनगंज संसदीय क्षेत्र में आती है, एक बार फिर राज्य की सबसे हाई-प्रोफाइल सीटों में से एक बन गई है. 1951 में अस्तित्व में आई इस सीट का चुनावी इतिहास न केवल लंबा, बल्कि बेहद दिलचस्प रहा है, जहां अल्पसंख्यक मतदाताओं का प्रभुत्व राजनीतिक समीकरणों को पूरी तरह नियंत्रित करता है. अमौर विधानसभा क्षेत्र पूर्णतः ग्रामीण है और यहां एक भी शहरी मतदाता दर्ज नहीं है. 2024 के लोकसभा चुनावों के अनुसार, यहां मतदाताओं की कुल संख्या 3,24,576 है. यह सीट अपनी सघन मुस्लिम आबादी के कारण बिहार की राजनीति में एक विशिष्ट स्थान रखती है.

वोट गणित: 70% मुस्लिम वोटरों के सामने NDA की चुनौती

अमौर का चुनावी गणित पूरी तरह से इसके सामाजिक ताने-बाने पर निर्भर करता है. यहां मुस्लिम मतदाता करीब 2,19,122 यानी 69.8% हैं. अनुसूचित जाति (SC) मतदाता 12,871 (4.1%) और अन्य 26.1% हैं.

करीब 70% मुस्लिम मतदाताओं के साथ, यह सीट कांग्रेस, RJD और हाल ही में AIMIM जैसी अल्पसंख्यक केंद्रित पार्टियों के लिए मजबूत गढ़ रही है. 2024 के लोकसभा चुनावों में, अमौर विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस को 21,737 वोटों की बड़ी बढ़त मिली थी, जो यह स्पष्ट करता है कि आगामी विधानसभा चुनावों में NDA के लिए यह सीट AIMIM और कांग्रेस से वापस जीतना एक बड़ी चुनौती होगी.

मुख्य मुद्दे

युवाओं के रोजगार के लिए पलायन एक बड़ी सामाजिक-आर्थिक चिंता है, क्योंकि क्षेत्र में औद्योगिक अवसर सीमित हैं. अमौर सीट की सबसे खास बात इसका सांप्रदायिक समीकरण है. 1951 में अस्तित्व में आने के बाद से, अब तक हुए 18 विधानसभा चुनावों में केवल एक बार (1977 में चंद्रशेखर झा) ही कोई गैर-मुस्लिम उम्मीदवार (जनता पार्टी से) यहां से जीत दर्ज कर सका है.

विकास का अभाव: क्षेत्र आज भी विकास से अछूता है.

बेरोजगारी और पलायन: क्षेत्र में औद्योगिक अवसरों की कमी के कारण युवाओं का रोजगार की तलाश में बड़े पैमाने पर पलायन एक गंभीर समस्या है.

कृषि और सिंचाई: जमीन उपजाऊ होने के बावजूद, किसान सिंचाई के लिए भूजल और मौसमी वर्षा पर निर्भर हैं. चावल और जूट मुख्य फसलें हैं.

Advertisement

कब-कब कौन जीता/पिछली हार जीत

अमौर का राजनीतिक इतिहास अस्थिर रहा है, जहां पार्टियों और निर्दलियों ने बारी-बारी से जीत दर्ज की है.

सर्वाधिक जीत- कांग्रेस (8 बार), निर्दलीय (4 बार). अन्य विजेता- प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (2 बार), जबकि जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी, बीजेपी और AIMIM ने एक-एक बार जीत हासिल की है.

2020 विधानसभा चुनाव:

AIMIM की ओर से अख्तरुल ईमान ने इस सीट पर पहली बार जीत दर्ज की। इस जीत ने क्षेत्र के राजनीतिक समीकरणों में बड़ा बदलाव किया. 2020 में कुल मतदान प्रतिशत 58.81% रहा, जो हाल के वर्षों में सबसे कम था.

Advertisement

माहौल क्या है?

इस बार अमौर का चुनावी माहौल त्रिकोणीय और बेहद दिलचस्प है. इस बार कुल नौ प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं, जिनमें मुख्य मुकाबला इन दिग्गजों के बीच माना जा रहा है:

AIMIM: मौजूदा विधायक अख्तरुल ईमान (जीत के प्रबल दावेदार).

JDU (NDA): सबा जफर (NDA के लिए सीट वापस पाना बड़ी चुनौती).

कांग्रेस: अब्दुल जलील मस्तान (कांग्रेस के पास लोकसभा 2024 की बढ़त).

जनसुराज: अफरोज आलम.

2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली भारी बढ़त और 2020 में AIMIM की जीत ने स्पष्ट कर दिया है कि अमौर में NDA के लिए मुकाबला आसान नहीं है. यहां की राजनीति पूरी तरह से मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण और बिखराव पर टिकी हुई है. विकास और बेरोजगारी के मुद्दों से कहीं अधिक, अल्पसंख्यक मतदाताओं का रुख ही इस सीट के भाग्य का फैसला करेगा.

Advertisement

Featured Video Of The Day
Andhra Pradesh Bus Fire: Kurnool बस हादसे में 11 लोगों की मौत, 20 यात्रियों को बचाया गया
Topics mentioned in this article