बिहार की 5 राज्यसभा सीटों पर चुनाव, 1 सीट को लेकर एनडीए में खींचतान, किसका पलड़ा होगा भारी

अप्रैल महीने में बिहार के कोटे से राज्यसभा की 5 सीटें खाली होने जा रही हैं. जैसे-जैसे यह तारीख नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे एनडीए के भीतर हलचल तेज हो गई है. बाहर से भले ही गठबंधन एकजुट दिखे, लेकिन अंदरखाने एक सीट को लेकर तीनों प्रमुख घटक दलों- भाजपा, जदयू और लोजपा के बीच खींचतान की स्थिति बनती दिख रही है.

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  • बिहार से अप्रैल में खाली होने वाली पांच राज्यसभा सीटों में से चार पर एनडीए के अंदर लगभग सहमति बनी हुई है
  • भाजपा और जदयू दोनों को कम से कम दो-दो सीटें मिलने की दावेदारी के कारण पांचवीं सीट विवाद का केंद्र बनी है
  • लोक जनशक्ति पार्टी भी एक सीट की मांग पर अड़ी हुई है और गठबंधन में अपनी भूमिका बनाए रखना चाहती है
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अप्रैल महीने में बिहार के कोटे से राज्यसभा की 5 सीटें खाली होने जा रही हैं. जैसे-जैसे यह तारीख नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे एनडीए के भीतर हलचल तेज हो गई है. बाहर से भले ही गठबंधन एकजुट दिखे, लेकिन अंदरखाने एक सीट को लेकर तीनों प्रमुख घटक दलों- भाजपा, जदयू और लोजपा के बीच खींचतान की स्थिति बनती दिख रही है. यह खींचतान सिर्फ एक सीट की नहीं, बल्कि राजनीतिक संदेश और संतुलन की रणनीति से जुड़ी है. जो 5 राज्यसभा सीटे खाली हो रही है, उसमें उपेंद्र कुशवाहा की सीट, RJD कोटे से 2- एडी सिंह और प्रेम गुप्ता और वही जेडीयू से हरिवंश और राम नाथ ठाकुर है.

राज्यसभा की सीटें किसी भी दल के लिए सिर्फ संसद पहुंचने का रास्ता नहीं होतीं, बल्कि यह सत्ता में हिस्सेदारी और राजनीतिक हैसियत का भी प्रतीक होती हैं. बिहार से 5 सीटों का एक साथ खाली होना इसलिए अहम है क्योंकि इससे सभी दलों को अपने-अपने नेताओं को दिल्ली भेजने का मौका मिलता है. एनडीए के पास बिहार विधानसभा में मजबूत संख्या है, इसलिए यह तय माना जा रहा है कि इन 5 में से अधिकतर सीटें एनडीए के खाते में जाएंगी. सवाल सिर्फ यह है कि किस दल को कितनी सीटें मिलेंगी.

अगर विधानसभा संख्या बल के हिसाब से देखा जाए, तो एनडीए को आसानी से 4 से 5 सीटें मिल सकती हैं. इसमें सबसे मजबूत दावेदारी भारतीय जनता पार्टी और जनता दल की मानी जा रही है. भाजपा और जदयू दोनों यह मानकर चल रहे हैं कि उन्हें कम से कम दो-दो सीटें मिलनी चाहिए. यहीं से असली समस्या शुरू होती है, क्योंकि अगर भाजपा को 2 और जदयू को 2 सीटें दी जाती हैं, तो पांचवीं सीट किसे मिले, यही विवाद का केंद्र है.

एनडीए की तीसरी अहम सहयोगी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी भी इस बार पीछे रहने को तैयार नहीं है. पार्टी का तर्क है कि उसने हाल के विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया है और एनडीए की जीत में उसकी भूमिका रही है. लोजपा का मानना है कि अगर उसे राज्यसभा में प्रतिनिधित्व नहीं मिला, तो गठबंधन के भीतर उसका महत्व कम होकर रह जाएगा. इसलिए वह कम से कम एक सीट की मांग पर अड़ी हुई है.

भाजपा का नजरिया थोड़ा अलग है. पार्टी के नेताओं का मानना है कि देशभर में राज्यसभा में मजबूत संख्या बनाए रखना जरूरी है, ताकि केंद्र सरकार के विधेयकों को पास कराने में कोई अड़चन न आए. भाजपा यह भी चाहती है कि बिहार से ऐसे चेहरे राज्यसभा जाएं, जो राष्ट्रीय राजनीति में पार्टी की आवाज मजबूत कर सकें. इसलिए भाजपा की कोशिश है कि उसे कम से कम दो, और संभव हो तो तीन सीटें मिलें. इसी वजह से वह पांचवीं सीट पर भी अपनी दावेदारी कमजोर नहीं करना चाहती.

वहीं जदयू की चिंता अलग है. पार्टी नेतृत्व का मानना है कि मुख्यमंत्री पद जदयू के पास होने के बावजूद अगर राज्यसभा में उसे सीमित हिस्सेदारी दी गई, तो यह राजनीतिक संदेश के लिहाज से गलत होगा. जदयू को डर है कि अगर भाजपा को ज्यादा सीटें मिल गईं, तो गठबंधन में संतुलन बिगड़ने का संदेश जाएगा. इसलिए जदयू भी दो सीटों से कम पर तैयार नहीं दिख रही है और पांचवीं सीट पर भी उसकी नजर बनी हुई है.

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यही वजह है कि पांचवीं सीट एनडीए के भीतर सबसे विवादित बन गई है. यह सीट सिर्फ राज्यसभा जाने वाले एक नेता का फैसला नहीं करेगी, बल्कि यह भी बताएगी कि एनडीए के भीतर किस दल का पलड़ा भारी है. भाजपा इसे राष्ट्रीय जरूरत के रूप में देख रही है, जदयू इसे राजनीतिक सम्मान से जोड़कर देख रही है, और लोजपा इसे अपने अस्तित्व और भविष्य की पहचान मान रही है.

सूत्रों के मुताबिक, इस मसले का अंतिम फैसला पटना में नहीं, बल्कि दिल्ली में शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर होगा. भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और लोजपा के शीर्ष नेता, तीनों के बीच बातचीत चल रही है. संभावना है कि कोई ऐसा बीच का रास्ता निकाला जाएगा, जिससे गठबंधन में असंतोष न फैले. मुमकिन है कि किसी दल को अभी सीट मिले और किसी को भविष्य में कोई और राजनीतिक समायोजन.

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महागठबंधन भी इस खींचतान पर नजर बनाए हुए है. विपक्ष को उम्मीद है कि अगर एनडीए के भीतर मतभेद ज्यादा बढ़े, तो उसे राजनीतिक फायदा मिल सकता है. हालांकि संख्या बल के मामले में महागठबंधन कमजोर है, लेकिन वह इस मुद्दे को राजनीतिक दबाव बनाने के रूप में जरूर इस्तेमाल करेगा. अप्रैल में खाली हो रही बिहार की 5 राज्यसभा सीटें एनडीए के लिए मौका भी हैं और चुनौती भी. चार सीटों पर तस्वीर लगभग साफ है, लेकिन पांचवीं सीट ने गठबंधन की अंदरूनी राजनीति को सामने ला दिया है. यह खींचतान आने वाले दिनों में यह तय करेगी कि एनडीए के भीतर संतुलन कैसे साधा जाता है और कौन सा दल खुद को ज्यादा मजबूत स्थिति में पाता है.

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