समानता का आलम यह है कि भारत की कुल संपत्ति का 73 प्रतिशत हिस्सा एक फीसदी लोगों के पास है और 67 करोड़ ग़रीबों के पास जितना पैसा है उसके बराबर इन एक फीसदी के पास है. आर्थिक आंकड़े बताते हैं कि हम समानता के पैमाने पर खरे उतरे हैं. पर क्या समानता आर्थिक ही होती है, आप कह सकते हैं कि संविधान के सामने तो सब समान हैं लेकिन क्या ग़रीब को भी उसी तरह न्याय मिल जाता है जिस तरह अमीर को मिल जाता है. मुल्क के संसाधनों पर अधिकार की समानता क्या गरीब की भी वही है जो अमीर की या ताकतवर की है. बंधुत्व कहां से आया, समानता और स्वतंत्रता कहां से आया. फ्रांस की क्रांति के ये शब्द भारत के संविधान की प्रस्तावना में क्यों आए. (सौजन्य : डीडी नेशनल)