आपको अब भी वो दिन याद होगा जब अचानक आपकी जेब में और आपके घर में पड़े 500 और हज़ार के नोट बेकार हो गए थे. वह आपका काला पैसा नहीं था, मेहनत से कमाया हुआ पैसा था जिसको बदलने के लिए अगले एक महीने आप तरह-तरह की कतारों में घंटों खड़े रहे. ये वो पैसा था जो महिलाएं अपने मासिक खर्च से बचा-बचा कर किसी संकट के लिए रखती थीं. आपको ये भी याद होगा कि बहुत सारी छोटी दुकानें उस दौरान बंद हो गई थीं, बहुत से छोटे कारख़ानों में काम रुक गया था, बहुत सारे दिहाड़ी के मजदूर अपने-अपने घर और गांव लौटने को मजबूर हुए थे. 8 नवंबर 2016 की उस रात हमारे प्रधानमंत्री ने घोषणा की थी कि यह क़दम काले धन को, आतंकवाद को और नक्सलवाद को रोकने के लिए उठाया गया है. इस क़दम से आतंकवाद और नक्सलवाद कितना रुका, हम देखते रहे हैं. काले धन को लेकर भी बहस और क़वायद जारी है. लेकिन अब जो नया ख़ुलासा सामने आया है, वह और हैरान करने वाला है. इतना बड़ा फ़ैसला करने से पहले प्रधानमंत्री ने देश के रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया की इजाज़त तक नहीं ली.