हमारे देश में चुनाव के समय मुसलमान होना और चुनाव बीत जाने के बाद मुसलमान होना यह दो राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक स्थिति हैं। आप कब मुसलमान होते हैं और कब मुसलमान की जगह उनके इंसान और नागरिक होने की बात होने लगती है इसका भी फैसला मुसलमान नहीं करता बल्कि मुसलमानों पर बात करने वाला करता है।