कुछ दिन पहले दिल्ली के नज़फ़गढ़ से एक छात्र ने लिखा था कि उसके गांव में लाइब्रेरी नहीं है. लाइब्रेरी जाने के लिए उसे दिल्ली में ही 40 किलोमीटर का सफ़र करना पड़ता है. शायद वह पहला मौका था या पहला दर्शक था जिसने लाइब्रेरी के लिए हमें पत्र लिखा था. पिछले कुछ दिनों से उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से छात्रों के मैसेज आ रहे थे कि वे लाइब्रेरी और किताबों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं. ऐसा कब सुना है आपने कि छात्र अपने कॉलेज की कबाड़ हो चुकी लाइब्रेरी को बेहतर करने के लिए आंदोलन कर रहे हों. ज़ाहिर है इस पर ध्यान जाना ही चाहिए. अच्छी बात है कि छात्रों ने पहले संघर्ष किया. कई दिनों से संघर्ष किया ताकि वे स्थानीय स्तर पर अपनी यह लड़ाई जीत सकें. अगर उनकी मंशा लाइब्रेरी के नाम पर प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी के लिए रीडिंग रूम तक सीमित है तो फिर कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन किताबों की दुनिया में खोए रहने के लिए वे एक बेहतर लाइब्रेरी मांग रहे हैं, तब फिर इस हफ्ते का यह सबसे शानदार जन आंदोलन है.