कुछ समय से एक आदत सी पड़ गई थी लोगों को, जब उनको यह लगने लगा कि एक नफरती माहौल बन रहा है. इसमें आदमी यूज टू महसूस कर रहा था. लेकिन इसके बाद भी पिछले हफ्ते जब दो प्रकरण हुए, मेरा दावा है कि यह दोनों प्रकरण एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, तो दिल दहल उठा. इतना हौसला है लोगों के अंदर कि वे यह भी कर सकते हैं. जंतर मंतर पर भद्दे नारे, एक समुदाय विशेष के खिलाफ नारे. इस तरह के नारों से ही एक तरह की मेंटेलिटी बनती है जिससे कानपुर जैसा हादसा होता है. लोगों ने एक छोटी सी बच्ची का रोना तक नहीं सुना.