मॉब लिचिंग के बारे में सुप्रीम कोर्ट के ही एक विस्तृत फैसले का ज़िक्र करना ज़रूरी है. 16 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट में मॉब लिंचिंग के बारे में आदेश देकर ज़िले से लेकर राजधानी के स्तर पर मॉब लिंचिंग को रोकने के लिए पुलिस की पूरी जवाबदेही तय की थी. इसी के साथ अदालत ने कहा था केंद्र और राज्य सरकार को रेडियो, टीवी और ऑफिशियल साइट पर प्रसार करना चाहिए बताना चाहिए कि मॉब लिंचिंग और भीड़ की हिंसा की सज़ा बहुत सख़्त है. सोशल मीडिया पर भीड़ को उकसाने वाले ग़ैर जवाबदेह वाली सामग्री हटाई जाए. जो लोग यह काम कर रहे हैं उनके खिलाफ़ FIR होनी चाहिए.
पहले तो इसी की समीक्षा होनी चाहिए कि भीड़ की हिंसा को रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने रेडियो टीवी या अखबार में क्या प्रचार प्रसार किया. क्या आपने ऐसा कोई अभियान देखा है या विज्ञापन देखा है. अब इसी संदर्भ में उन 49 लोगों के पत्र को देखिए जो प्रधानमंत्री को लिखा गया था. पत्र लिखने वालों ने खुद को शांति का समर्थक बताया है और प्रधानमंत्री से अपील की गई है कि मुस्लिम, दलित या अन्य अल्पसंख्यकों की लिंचिंग तुरंत रोकी जाए. अब आप बताइये. क्या ये 49 लोग पत्र लिखकर कोई आपराधिक काम कर रहे थे? लेकिन इसके बाद भी पत्र लिखने वालों के खिलाफ बिहार के मुज़फ्फरपुर में एफआईआर दर्ज हुई है. इन लोगों पर राष्ट्रदोह, धार्मिक आस्था भड़काने, शांति भंग करने का आरोप लगाया गया है. क्या मॉब लिंचिंग के खिलाफ लोगों को आगाह करना, प्रधानमंत्री या किसी को पत्र लिखना, धार्मिक आस्था भड़काने का प्रयास है, क्या ये काम राष्ट्रोह है, पत्र लिखने वालों में कुछ की उम्र तो बहुत ही है.