जब सर्वोच्च अदालत अपने फैसले में जॉर्ज ऑरवेल की रचना 1984 का ज़िक्र कर दे तो यह बात लोकतंत्र में विश्वास रखने वाली किसी भी सरकार के लिए शर्मनाक समझी जानी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के फैसले में जॉर्ज ऑरवेल का नाम होना ही उन तमाम आशंकाओं को वास्तविकता के करीब ले आता है, जिससे सरकार अनजान बने रहने का नाटक करती है.