रवीश कुमार का प्राइम टाइम : ऑनलाइन पढ़ाई - आफत या मिठाई?

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  • प्रकाशित: सितम्बर 18, 2020
हमारे देश में स्कूल कॉलेज एक समान नहीं है, असमानता के सबसे बड़े सामान हैं. खराब कॉलेज, खराब यूनिवर्सिटी और खराब स्कूलों से भरा भारतवर्ष ही खुद को विश्वगुरु कह सकता है. क्योंकि जो अच्छा गुरु होता है वो कभी अपने आप को दुनिया का गुरु नहीं कहता है. एक अच्छा प्रोफेसर हमेशा क्लास में खुद को छात्र कहता है. दुनिया का इकलौत देश है भारत जिसके नेता अपने विशेषणों में विश्वगुरु लगाने की चाह रखते हैं. इसके लिए कहीं कोई एक्जाम नहीं होता है, जिसे देखिए वो हाथ में माइक लिए मंच पर विश्वगुरु-विश्वगुरु कह रहा है. कितना अच्छा होता कि भारत का कोई नेता ये कहता कि भारत को अच्छा छात्र बनना चाहिए. जो जिज्ञासू हो, जो हर चीज जाने, नई नई किताबें पढ़े, भले वो नेता चुनाव हार जाए. मैं कस्बों के कॉलेज की बात कर रहा हूं उनकी दुर्दशा बहुत ज्यादा है. ऑनलाइन...एक नई विभाजन रेखा है, ये कई स्तरों पर आपको दिखेगी. प्राइवेट और सरकारी स्कूलों के बीच, वाईफाई और लैपटॉप से लैस और इससे वंचितों के बीच और उनके बीच भी जो साधन संपन्न है. आप ऑनलाइन पढ़ाई का बोझ उठा सकते हैं, इससे आपकी पढ़ाई और समझ की समस्या खत्म नहीं हो जाती है. छात्र और टीचर के बीच का रिश्ता टूटा है. उसकी जगह नया बन रहा है और बहुत कुछ बिगड़ भी रहा है.

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