रविवार को कोलकाता (Kolkata) की सड़कों पर सिर्फ एक अभिनेता को अंतिम विदाई नहीं दी गई बल्कि उस विदाई में किसी अभिनेता के लिए स्वागत भी था. अगर आने वाला कलाकार सौमित्र चटर्जी (Saumitra Chatterjee) की तरह अपने अभिनय की साधना में डूबा रहेगा. तो किनारे बैठा समाज उसे अपने दिलों में किसी पुराने हिसाब की तरह जोड़ता रहेगा. बंगाल शोक में डूबा हुआ है यह बात उत्तर भारत की समझ से बहुत दूर की है. जब दिल्ली में हिंदी के बड़े कवि कुंवर नारायण का अंतिम संस्कार हो रहा था तो वहां कोई 150 लोग भी नहीं होंगे. जब विजयदान देथा जैसे साहित्यकार का निधन हुआ तो शायद ही किसी चैनल के पास उनसे बातचीत का कोई वीडियो भी था. ये किसी की लोकप्रियता का पैमाना तो नहीं हो सकता लेकिन कुंवर नायारण की कविताएं और विजयदान देथा की लोककथाएं आज भी इंटरनेट पर किसी बड़े संकट के समय आसरा बनकर तैरती रहती हैं. आपको तीन अखबारों की कवरेज से अंदाजा लगेगा कि इस अंतरारष्ट्रीय स्तर के अभिनेता को वहां के अखबारों ने कैसे याद किया है.