किसान आंदोलन को कवर करने के लिए केवल किसानों को जानना जरूरी नहीं है. कीलों के बारे में जानना जरूरी नहीं है. कंटीले तारों के बारे में जानना जरूरी नहीं है. रिहाना के बारे में जानना जरूरी है. कसमों में श्रेष्ठ कसम, विद्या कसम खाकर मैं कहता हूं कि रिहाना के बारे में नहीं जानता था. हम तो रिहाना सुल्तान के बारे में जानते थे जो इलाहाबाद की रहने वाली थीं. जिन्हें 1970 की ‘दस्तक’ फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला था. इस फिल्म के लिए मजरू सुल्तानपुरी ने कमाल की गजल लिखी है. “हम हैं मता-ए-कूचा -ओ-बाजार की तरह, उठती है हर निगाह खरीदार की तरह” आप यूट्यूब पर सुनिएगा इसकी एक और पंक्ति है. “मजरूह लिख रहे हैं वो अहल-ए-वफा का नाम, हम भी खड़े हुए हैं गुनहगार की तरह.” जल्दी ही समझ में आ गया कि जिस रिहाना के कारण अपनी रिहाना का ख्याल आया वो दुनिया की बड़ी पॉप स्टार हैं. आठ बार वो ग्रैमी अवार्ड जीत चुकी हैं. उनका नाम रिहाना नहीं रिएना है. अंग्रेजी नाम के कारण उर्दू में भटक गया. रिहाना ने किसान आंदोलन पर छपी सीएनएन की एक रिपोर्ट को ट्वीट कर दिया और सिर्फ इतना लिख दिया कि हम इसके बारे में बात क्यों नहीं कर रहे हैं? एक पॉप स्टार के इतनी सी बात से भूचाल आ गया. ट्वीटर पर महापंचायत छिड़ गई. हम आगे जिंद महापंचायत की बात करेंगे. लेकिन इस ग्लोबल महापंचायत को नजरअंदाज भी नहीं कर सकते हैं.