यूपी के चुनावी भाषणों में मंदिर और माफिया के बहाने धर्म का जिक्र होने लगा है. ऐसा नहीं है कि विकास के दावे नहीं हो रहे. पुलों और एक्सप्रेस-वे का शिलान्यास नहीं हो रहा. लेकिन हर भाषण में अब धर्म आने लगा है. कभी सीधे-सीधे नाम लेकर, तो कभी इशारे-इशारे से किसी के कथित वर्चस्व को कुचल देने की हुंकार लेकर.