रागदरबारी के 50 साल होने जा रहे हैं. महान साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल की यह रचना सिर्फ उनके उपन्यास में नहीं बल्कि हमारे आस पास भी जीवित है. आप कह सकते हैं कि हमारी व्यवस्था का लाइव टेलिकास्ट जो इस उपन्यास से शुरू हुआ था वो आज तक जारी है. श्री लाल शुक्ल इस दुनिया में नहीं है मगर राग दरबारी की दुनिया ही आज की दुनिया है. हमारा सिस्टम हमें हताश करता हुआ खुद ही हास्य में बदल चुका है. पचास साल पहले जब यह किताब आई थी तब उसी साल 2200 कॉपी बिक गई थी. पहले ही साल साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल गया था.