दो महीने तक आपने देखा कि किसी की ज़िंदगी की कोई गरिमा नहीं बची थी. आम आदमी हो या मुग़ालते में रहने वाले रसूख़दार लोग.सब अस्पताल में बेड खोज रहे थे और आक्सीजन का सिलेंडर तक हासिल नहीं कर पा रहे थे. इस अंजाम से गुज़रने के बाद भी अगर आग़ाज़ नया नहीं होगा तो फिर से वही अंजाम होगा. गुजराती अख़बारों और भास्कर समूह ने तमाम राज्यों से मौत के आंकड़े को छिपाने का जो खेल पकड़ा है उसे कुछ अंग्रेज़ी अख़बार भी सीख रहे हैं. नोएडा और दिल्ली में पत्रकारों का घनत्व देश में सबसे अधिक होगा. नोएडा से हमारे सहयोगी सौरव शुक्ल ने बताया था कि कैसे मरने वालों का आंकड़ा वास्तविकता से दूर है. लेकिन दिल्ली वालों को आज पता चला है कि इस साल अप्रैल और मई के महीने में जारी होने वाले मृत्य प्रमाण पत्रों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि देखी गई है.