नदियों की सफ़ाई के नाम पर अरबों रुपए पानी में बह गए लेकिन पानी साफ़ नहीं हुआ. मौजूदा सरकार ने 2015 में नमामि गंगे योजना के तहत 20 हज़ार करोड़ का बजट मंज़ूर किया. 2018 में सूचना के अधिकार क़ानून से पता चला कि चार साल में मोदी सरकार ने 20 हज़ार करोड़ में से सिर्फ़ 6011 करोड़ रुपए नमामि गंगा बजट के तहत रिलीज़ किए थे. इस रकम में से भी नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा अथॉरिटी सिर्फ़ 4322 करोड़ रुपए खर्च कर पाई. 2018-19 के अंतरिम बजट में सरकार ने नमामि गंगा के तहत 2300 करोड़ रुपए मंज़ूर किए थे लेकिन सिर्फ़ 700 करोड़ रु का ही इस्तेमाल हो पाया. 13 जनवरी, 2015 को नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल ने अपने एक आदेश में 'मैली से निर्मल यमुना' योजना के तहत 31 मार्च, 2017 तक यमुना को पूरी तरह साफ़ करने का आदेश दिया था, लेकिन इसका आदेश का भी पालन नहीं हुआ और यमुना मैली की मैली रह गई. यमुना में कई जगह मैल, गंदे और ज़हरीले नालों की शक्ल में गिरता है.फरीदाबाद का 70 किलोमीटर लंबा गौंछी नाला भी ऐसा ही है, जिसका गंदा पानी अब तक कई लोगों की बीमारी और मौत की वजह बन चुका है. नाले के आसपास के लोगों का जीना मुश्किल हो गया है. सुशील महापात्र की रिपोर्ट