सवाल ख़ुद से पूछना चाहिए कि क्या हम हर हाल में हिंसा की संस्कृति के ख़िलाफ़ हैं. अगर हैं तो क्या सभी प्रकार की हिंसा के ख़िलाफ़ बोल रहे हैं. आख़िर क्यों है कि पुलिस और अदालत के रहते हुए कई संगठन गले में का पट्टा डालकर खाने से लेकर पहनावे की तलाशी लेने लगते हैं. क्यों लोग इलाज में चूक होने पर सीधा डॉक्टरों को ही मारने लगते हैं. कानून अपने हाथ में लेने लगते हैं. क्या उन्हें पुलिस की जांच में भरोसा नहीं है.