दिसंबर, 2012 का निर्भया कांड हमारी जनचेतना में वो प्रस्थान बिंदु है, जहां से हम एक समाज और सरकार के रूप में बलात्कार की किसी घटना को एक सिस्टम की नजर से देखने लगते हैं। अब नाइंसाफी नहीं होगी, कोताही नहीं बरती जाएगी और बर्दाश्त नहीं होगा के भाव से। इसके बाद भी बलात्कार की किसी एक घटना को प्रतीक बनाकर राजनीतिक प्रदर्शन और अभिनयों का सिलसिला नहीं रुका है।